हाँ मैं मजदूर हूँ, इस देश का मजदूर. आज मेरा दिन है. पुरे विश्व भर में 1986 में इसे मनाने की शुरुआत हुई थी, वहीं मेरे अपने देश भारत में इसे 1923 में मनाया जाने लगा, इस उम्मीद से कि शायद हमें भी खुश रहने का अधिकार मिले. आप लोग शायद सोच रहे होंगे कि किसी बॉलीवुड सेलिब्रिटी के किसी स्पेशल दिन की तरह हम पुरे देश में सुर्ख़ियों में रहेंगे, मीडिया हेडलाइंस की प्रमुख सुर्खियां आज हम बनेंगे, जगह-जगह आज हमारे नाम की चर्चाएं होंगी, तो शायद आप गलत सोच रहे है. हम आज भी उसी तपती गर्मी में दो रोटी कमाने के लिए निकलेंगे, और शाम को वैसे ही पसीने में तर-बतर उन्हीं मैले कपड़ो में सो जाएंगे.
आप चाहे तो हम लोगों को मजदूर दिवस की शुभकामनाएं दे सकते है लेकिन यकीन मानिए मेरे जैसे कई मजदूरों को शायद ही पता हो कि 1 मई मजदूर दिवस मनाया जाता है. हम अब किसी से कोई उम्मीद नहीं रखते है, हमारी दुनिया बहुत छोटी है, हम बाहरी दुनिया के बारे में न ज्यादा जानते है न कुछ सोच पाते है, हम बरसों से उलझे है और शायद ऐसे ही उलझे रहेंगे.
आजादी के बाद की सरकारों ने हमारे लिए क्या किया ये शायद सरकारें ही जानती होगी या उन नियमों को बनाने वाले. हमारे लिए वैसे तो लेबर एक्ट बनाया गया है, जगह-जगह श्रमिक विभाग के ढेरों कार्यालय मौजूद है, इन कार्यालयों में हमारे लिए ढेरों पैसा भी आता होगा, लेकिन अफ़सोस इन सब जानकारी हमें नहीं है साहब... वो क्या हेना पेट भरने से फुरसत मिले तब न.
एक मजदूर होने के नारे कभी-कभी समझ नहीं आता कि हम दुःखी रहे, रोये, या हँसे. आज हमारा देश भले ही विकास की राह पर चल रहा है, आजादी के बाद देश ने हर क्षेत्र में तरक्की की, हो सकता है कुछ लोग जानते होंगे कि इस विकास में हमारा भी बहुत बड़ा हाथ है, लेकिन अफ़सोस हमें इसका हिस्सा नहीं समझा जाता है, शाम होने के बाद 2-4 छोटे नोट लेकर हम भी घर को चले जाते है, जाना भी जरुरी है, घर के चूल्हे से बड़ी जिम्मेदारी भला और क्या हो सकती है. पैदा होने से लेकर मरने तक बस यही तो करना है, बाकी के शौक इंसानों के लिए है और हम शायद.....
एक मजदूर