प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कुछ बातें जगजाहिर हो चुकी हैं. मसलन, वह हमेशा कुछ बड़ा सोचते, बड़ा करते या बड़ा करते दिखाते हैं. उनके फैसले और घोषणाएं झटके देने वाली होती हैं. नोट बंदी से लेकर जीएसटी पर अमल, कश्मीर से धारा 370 हटाने, विश्वव्यापी कोरोना महामारी के निपटने के लिए चार चरणों का लॉकडाउन (माफ कीजिएगा अभी लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू नहीं हुआ है. हालांकि इसके संकेत प्रधानमंत्री मोदी ने 12 मई को देशवासियों के नाम अपने संबोधन में दे दिया है.) और इसके चलते लड़खड़ा सी गई भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और आत्म निर्भर भारत के निर्माण के लिए 20 लाख करोड़ रु. का आर्थिक पैकेज घोषित करने को इस लिहाज से भी देख सकते हैं.
प्रधानमंत्री 12 मई की शाम को आठ बजे राष्ट्र के नाम संदेश जारी करने वाले हैं, इस बात की घोषणा होने के बाद से ही कयास लगाए जाने लगे थे कि इस बार वह कोरोनाजनित लॉकडाउन के चलते बेरोजगार और किराए के मकानों से बाहर कर दिए गये प्रवासी मजदूरों के दुख दर्द का जिक्र करेंगे. उनके राष्ट्र के नाम संबोधन में शहरों से बड़े पैमाने पर भूखे प्यासे, कुछ सामान और बच्चों को लादे पैदल सड़कों पर और यहां तक कि रेल की पटरियों पर गांव-घर वापस जा रहे लोगों और उनकी दुश्वारियों के लिए कोई संदेश होगा. गौरतलब है कि 5 मई की सुबह महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास रेल पटरियों पर पैदल आते थक कर सो रहे 16 प्रवासी मजदूर एक मालगाड़ी से कटकर मर गये थे. ये मजदूर मध्य प्रदेश में अपने गांव-घर लौट रहे थे. इस तरह के तमाम कारुणिक दृश्य सड़कों पर पैदल अपने गांव घर को लौट रहे प्रवासी मजदूरों के झुंड, कुछ जगहों पर उनके साथ पुलिस की मार पिटाई, किसी भी कीमत पर गांव घर लौटने के क्रम में बसों, रेल गाड़ियों, ट्रकों, कंटेनरों और यहां तक कि मिक्सर प्लांटों में छिपकर भी उन्होंने सफर कबूल किया. पकड़े भी गये. बाद में सरकार ने कुछ विशेष रेलगाड़ियां भी चलाईं लेकिन कथित रूप से 85 प्रतिशत सबसिडी दिए जाने की भ्रामक और ढपोरशंखी घोषणाओं के बावजूद किराया इतना अधिक बन रहा है कि तकरीबन पौने दो महीने से बेरोजगार चल रहे और बचत का पैसा भी खर्च कर चुके मजदूरों के लिए उसका भुगतान भारी पड़ रहा है.
कयास इस बात पर भी लग रहे थे कि प्रधानमंत्री अपने संबोधन में यह भी बताएंगे कि इन प्रवासी मजदूरों के भविष्य और उससे ही जुड़े शहरों-महानगरों में बुनियादी ढांचे के विकास, कल करखानों में उत्पादन को लेकर उनके पास कोई ठोस कार्य योजना भी है कि नहीं!
लेकिन प्रधानमंत्री ने अपनी प्रचलित छवि के साथ किसी तरह का समझौता करना मुनासिब नहीं समझा. उपरोक्त अपेक्षाओं से उलट उन्होंने कुछ बड़ा करने या कम से कम बड़ा दिखाने की गरज से कोरोना संकट के बावजूद देश की लड़खड़ा रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और 'आत्म निर्भर भारत अभियान' (इसे पहले मेक इन इंडिया के रूप में जाना जाता था) को गति प्रदान करने के लिए 20 लाख करोड़ रु. (देश के सकल घरेलू उत्पाद का दस प्रतिशत) के भारी भरकम आर्थिक पैकेज की घोषणा की. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ी चालाकी से उसमें यह भी जोड़ दिया कि इस 20 लाख करोड़ रु. के आर्थिक पैकेज में लॉकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद 26 मार्च को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत गरीब एवं जरूरतमंद प्रवासी मजदूरों के लिए डाइरेक्ट ट्रांस्फर बेनिफिट के रूप में पैसे उनके खाते में डालने आदि के लिए घोषित 1.7 लाख करोड़ रु. का आर्थिक पैकेज और फिर भारतीय रिजर्व बैंक के चेयरमैन शशिकांत दास के द्वारा कोरोना के कारण डगमगा रही अर्थव्यवस्था में जान डालने के लिए समय समय पर जारी तकरीबन 5.2 लाख करोड़ रु. का आर्थिक पैकेज भी शामिल है. यानी प्रधानमंत्री के द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज वस्तुतः 12 लाख करोड़ रु. का ही है. इस पैकेज की विस्तृत जानकारी देने की जिम्मेदारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दी गई. उन्होंने आज, बुधवार की दोपहर चार बजे बताया कि उक्त पैकेज में से तीन लाख करोड़ रु. एमएसएमई (माइक्रो, स्माल एवं मीडियम एंटरप्राइजेज) यानी छोटे और मझोले उद्योगों को तीन लाख करोड़ रु. के ऋण दिए जाएंगे. इसके साथ ही उन्होंने टीडीएस रेट में 25 प्रतिशत की कटौती, आयकर रिटर्न दाखिल करने की तिथि बढ़ाकर 30 नवंबर करने, ऐसी कंपनियों, जहां 100 से कम कर्मचारी काम करते हैं और वेतन 15 हजार से कम होता है, कर्मचारियों के भविष्यनिधि का पैसा सरकार द्वारा दिए जाने आदि की घोषणाएं की.
सवाल एक ही है कि इस भारी भरकम आर्थिक पैकेज के लिए धन कहां से आएगा. वैसे, थोड़ा गहराई में जाकर देखें तो यह कोई नया पैकेज नहीं है. दरअसल, मोदी जी स्वप्नदर्शी नेता हैं, अपनी लंबी चौड़ी घोषणाओं के जरिए वह बड़े बड़े सपने दिखाते हैं और उसके बाद वह उनके अमल की बात को भूल जाते हैं. इसलिए उनके विरोधी उन्हें 'फेंकू' भी कहते हैं. ज्यादा नहीं, अगर उनके द्वारा घोषित आर्थिक पैकेजों की सूची तैयार कर उनमें से कितनों पर अमल हुआ, इसका शोध करें तो एक अलग ही तस्वीर उभरकर आएगी. 2014 के लोकसभा चुनाव के समय मोदी जी के द्वारा विदेशी बैंकों में जमा कालाधन वापस लाकर प्रत्येक भारतीय के खाते में 15-15 लाख रु. जमा करने के दिखाए सपने को उनके सिपहसालार, भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष, अभी गृह मंत्री अमित शाह ही चुनावी जुमला करार दे चुके हैं. अब तो मोदी जी विदेश में अथवा देश में भी जमा कालेधन की चर्चा भी नहीं करते.
तकरीबन साढ़े चार साल पहले, बिहार विधानसभा के चुनाव के समय आरा में मोदी जी ने बड़े ही शाह खर्च अंदाज में बिहार के विकास के लिए सवा लाख करोड़ रु. के आर्थिक पैकेज देने की घोषणा की थी. बिहार के लोग अभी तक उस पैकेज का इंतजार कर रहे हैं जबकि अभी तक उन्हें इस पैकेज के नाम पर धेला भर भी नहीं मिल सका है.
इसी तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीर के शेरे कश्मीर स्टेडियम में एक रैली को संबोधित करते हुए जम्मू और कश्मीर के सम्यक विकास के लिए 80 हजार करोड़ रु. का पैकेज घोषित किया था. किसी राज्य के आर्थिक विकास के लिए इतनी रकम कम नहीं होती लेकिन उसमें से कितनी रकम अब तक वहां सतह पर खर्च हुई, इसका पता शायद किसी को नहीं.
और तो और तकरीबन नौ महीने पहले, 15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को संभवतः अब तक का सबसे बड़ा सपना दिखाते हुए लालकिले की प्राचीर से देश में बुनियादी ढांचे के विकास पर अगले पांच वर्षों में 100 लाख करोड़ रु. खर्च करने के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी. इसे अगर हम प्रति वर्ष के हिसाब से देखें तो 20 लाख करोड़ रु. का आर्थिक पैकेज प्रति वर्ष बैठता है. तो क्या 12 मई को प्रधानमंत्री के द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रु. का आर्थिक पैकेज वही है, या यह अलग से है. उस पैकेज के तहत अब तक कितनी रकम खर्च हुई, इसे कौन साफ करेगा.
इसी अवसर पर उन्होंने लालकिले की प्राचीर से अगले पांच वर्षों में भारत के पांच ट्रिलियन (खरब) डालर की अर्थव्यवस्था होने के सपने दिखाए थे. लेकिन इस तरह के सपने साकार कैसे होंगे! इसके लिए किसी ठोस कार्य योजना के अभाव में संस्कृत की एक उक्ति याद आती है, 'वचनम् किम् दरिद्रताम.' यानी अगर केवल बोलकर ही देना है तो इसमें किसी तरह की दरिद्रता क्यों हो. वाकई हमारे प्रधानमंत्री वचन के मामले में कतई दरिद्र नहीं हैं.
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