हम एक बुरे दौर से गुजर रहे है. कई लोगों के मुँह से सुना होगा कि राजनीती एक बुरी चीज है लेकिन असल में वो लोग यह भूल जाते है कि राजनीती अगर बुरी होती तो शायद हम आज इतनी तरक्की नहीं कर पाते. बरसों से गुलाम हमारे देश को अगर किसी ने सबसे ज्यादा खोखला किया है तो वो है देश के नेता लोग. इसलिए राजनीती कभी बुरी नहीं होती, बुरे होते है वो नेता जो खुद की झोली भरने के लिए देश तक को नीलाम करने से नहीं चूकते वर्ना एक समय हमारे देश में अच्छे नेता भी हुआ करते थे लेकिन अब लगता है जैसे अकाल सा पड़ गया है.
आज के इस दौर में जब आसपास किसी तरह के दंगों की खबरें सुनने को मिलती है तो बड़ा दुःख होता है कि कुछ अंधे युवा एक गलत नेतृत्व के चलते सड़कों को खून में रंगने से भी कतराते नहीं है. दंगों के बाद जब दो अलग-अलग पार्टियों के नेताओं के बयान सुनने को मिलते है तो लगता है कि हाँ अब शायद हम अच्छे नेतृत्व का अकाल झेल रहे है, असल में इन नेताओं को शायद इस बात की जानकारी नहीं होती या होती भी हो लेकिन नेताओं का एक छोटा सा बयान दंगा भड़काने के लिए काफी होता है.
रही बात बौद्धिक नेताओं की, तो शायद बौद्धिक नेता अब हमारे देश में विलुप्त होने की कगार पर है. हाल ही में कर्नाटक में 8 वीं पास एक मंत्री साहब को शिक्षा मंत्री का पद दिया गया था. वहीं देश में केंद्र में भी कुछ ऐसा नेता बैठे हुए है जो शायद ही कभी कुछ इनोवेटिव चीजों के बारे में सोच पाते हो. लेकिन आज के नेताओं की एक चीज जो सबसे ज्यादा देखने को मिली है वो यह कि अब नेता जनता के लिए नहीं चुना जाता अब भारत में नेता हिन्दू और मुसलमान के लिए चुनाव जाता है. और यह नेता पुरे पांच साल बस धर्म के नाम पर युवाओं को बरगलाने का ही काम करते है.
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