प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी सत्येंद्र नाथ का जन्म 1 जनवरी, 1894 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। 4 फरवरी, 1974 को 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। बोस की सबसे प्रमुख उपलब्धि आइंस्टीन के साथ उनका जुड़ाव है, जबकि वे क्वांटम भौतिकी और सापेक्षता सिद्धांत पर काम कर रहे थे। बोस-आइंस्टीन घनीभूत बोसोन की एक पतली गैस के मामले की स्थिति के बोस और आइंस्टीन की भविष्यवाणी का एक परिणाम था। विज्ञान और अनुसंधान के प्रति उनकी उत्कृष्ट सेवा के लिए, भारत सरकार ने उन्हें 1954 में भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण प्रदान किया।
बरकरार है आज भी एमएससी का रिकॉर्ड: सत्येंद्र नाथ ने 1915 में अप्लाइड मैथ्स से MSC की डिग्री हासिल कर ली थी। उन्होंने MSC में टॉप कर लिया था, बोला जाता है कि वह रिकॉर्ड नंबरों के साथ उन्होंने पास किया था। यह रिकॉर्ड आज भी कोई नहीं तोड़ पाया है। 1924 में ढाका यूनिवर्सिटी में फिजिक्स डिपार्टमेंट में रीडर के तौर पर उन्होंने क्वॉन्टम स्टेटिक्स पर एक पेपर लिखा और इसे मशहूर वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन के पास भेज दिया। आइंस्टाइन इससे बहुत प्रभावित हुए और इसका जर्मन में अनुवाद करके उसे एक जर्मन साइंस जर्नल में छपने भेज दिया है। इसी पहचान के आधार पर सत्येंद्र नाथ को यूरोप की साइंस लैब में काम करने का अवसर मिला। 1937 में महान कवि रबिंद्रनाथ टैगोर ने साइंस पर लिखी अपनी किताब विश्व परिचय सत्येंद्र नाथ बोस को समर्पित कर दी थी। इंडियन गवर्नमेंट ने बोस को देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से 1954 में सम्मानित भी किया जा चुका है।
अफसोस नोबेल नहीं मिला: बोस का देहांत 1974 में हुआ। उनकी विद्वता की चर्चा के अतिरिक्त उन्हें इस बात के लिए भी याद किया जाता है कि उन्हें उनके अनुरूप सम्मान नहीं मिल पाया है। उनके खोजे गए पार्टिकल बोसॉन पर काम करने के लिए कई वैज्ञानिकों को नोबेल मिला है पर खुद सत्येंद्र नाथ बोस को इसके लिए नोबेल पुरस्कार नहीं दिया था।
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