नई दिल्ली: यूनाइटेड नेशंस (UN) के अनुसार, कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते अरब देशों की अर्थव्यवस्थाएं 5.7 फीसदी तक टूट सकती हैं. इसके चलते लगभग एक चौथाई जनसंख्या गरीबी के गर्त में जा सकती है. सऊदी अरब में भी सरकार, आर्थिक व्यवस्था को संभालने के लिए सभी विकल्पों पर विचार कर रही है. इनमें से एक विकल्प इनकम टैक्स लगाने का भी है, क्योंकि सऊदी अरब विगत 30 वर्षों में पहली दफा इतने गहरे दबाव में है. 2020 में सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था 6.8 फीसदी तक सिकुड़ सकती है.
रिपोर्ट के अनुसार, रियाद ऐसे भयंकर हालात में अपने नागरिकों से सहायता लेने के लिए इनकम टैक्स चुकाने के लिए कह सकता है. बता दें कि सऊदी अरब के नागरिक आयकर नहीं चुकाते हैं, बल्कि वहां अप्रवासियों और कॉरपोरेट से 20 फीसदी इनकम टैक्स वसूला जाता है और वहां सभी के लिए 20 फीसदी फेडरल टैक्स है.
विश्व का सबसे अधिक तेल उत्पादन करने वाला देश पेट्रोलियम राजस्व को नागरिकों पर खर्च करता है. हालांकि जब क्रूड ऑयल की कीमतें कोरोना वायरस महामारी के कारण से गिर रही हैं और एक्सपोर्ट भी 65 फीसदी तक घट गया है तो, ऐसे में समझा जा रहा है कि सऊदी अरब देश में इनकम टैक्स की व्यवस्था लागू कर सकता है.
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