आज से शिव जी के प्रिय माह सावन की शुरुआत हो रही है। सावन के साथ बारिश भी आ गई है. आप सभी जानते ही होंगे हिंदू धर्म में सावन के महीने को बेहद पवित्र माना जाता है। जी हाँ और इस पूरे माह में शिव जी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। जी दरअसल धार्मिक मान्यता है कि इस माह में देवों के देव महादेव की पूजा-अर्चना करने से भोले शंकर प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों के जीवन से सभी कष्टों को हर लेते हैं। वैसे आज सावन का पहला दिन है तो हम आपको बताने जा रहे हैं कैसे आज आप शिव जी का पूजन कर सकते हैं जिससे वह खुश होंगे.
शिव जी के पूजन की विधि- आज सावन का पहला दिन है। ऐसे में आपको किसी शिव मंदिर या फिर घर पर ही शिव जी पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान शिव जी को बेल पत्र और जल चढ़ाएं। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। आपको बता दें कि सावन का महीना शिव उपासना के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में शिव उपासना से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं। इसी के साथ शिव जी को सच्चे मन से चढ़ाया गया मात्र एक लोटा जल की काफी होता है, इस वजह से इस दिन जलाभिषेक जरूर करें। अगर संभव हो तो सावन के पहले दिन भोलेनाथ के मंदिर में शिव चालीसा का पाठ करें। कहा जाता है ऐसा करने से दोगुना पुण्य मिल सकता है। इसी के साथ ही पूजा के दौरान भगवान शिव की आरती करें और भोग लगाएं। कहते हैं सावन के दिनों में शिव जी की आरती अकेले करें तो पूरे माह इसका पुण्य फल मिलता है। आइए जानते हैं शिव आरती.
शिव आरती
ॐ जय शिव ओंकारा. आरती
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी ।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
जटा में गंग बहती है, गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा।
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