बैंगलोर: कर्नाटक में एक विवादित मामले में, राज्य की पुलिस ने "भारत माता की जय" के नारे को नफरत फैलाने की धाराओं के तहत जोड़ते हुए पांच लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की थी। यह मामला कर्नाटक हाई कोर्ट तक पहुंचा, जहां कोर्ट ने इस नारे को नफरत फैलाने वाला नहीं माना और FIR को रद्द कर दिया।
हाई कोर्ट ने कहा कि "भारत माता की जय" बोलने से केवल सद्भाव बढ़ता है, न कि वैमनस्य। एकल न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने कहा कि यह नारा धर्मों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाला नहीं है। उन्होंने FIR को रद्द करते हुए बताया कि मामले में IPC की धारा 153A का एक भी तत्व पूरा नहीं होता है और इसे धारा का दुरुपयोग बताया। इस केस की कहानी यह है कि याचिकाकर्ता 9 जून 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह वाले दिन खुशियां मनाते हुए भारत माता की जय और जय हिन्द के नारे लगा रहे थे। जब वे उल्लाल तालुका के बोलीयार गांव में पहुंचे, तो उन पर 25 लोगों ने हमला किया और उनसे कहा कि वे "भारत माता की जय" का नारा क्यों लगा रहे हैं। हमलावरों ने उन पर चाकू से हमला भी किया। याचिकाकर्ताओं ने उसी रात 23 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कराई।
इसके बाद, एक मुस्लिम व्यक्ति पीके अब्दुल्ला ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ काउंटर FIR दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ताओं ने उन्हें धमकी दी थी। अब्दुल्ला ने खुद को स्थानीय मस्जिद का अध्यक्ष बताया और उनके खिलाफ IPC की कई धाराएं लगाई गईं, जिसमें 153A भी शामिल थी, जो धार्मिक या जातीय आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए दंडित करती है। हाई कोर्ट ने कहा कि यह FIR याचिकाकर्ताओं द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत का जवाबी हमला है और कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह नारा किसी प्रकार का अपराध नहीं है, बल्कि यह भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक है।
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