किसान आंदोलन के लिए SC ने फिर बनाई कमिटी, जानिए पिछली रिपोर्ट में क्या था

किसान आंदोलन के लिए SC ने फिर बनाई कमिटी, जानिए पिछली रिपोर्ट में क्या था
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नई दिल्ली: बीते कई महीनों से शंभू बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने अहम फैसला सुनाया है। अदालत  ने प्रदर्शनकारी किसानों की शिकायतों के सौहार्दपूर्ण निपटारे के लिए पांच सदस्यीय समिति गठित की है। समिति का नेतृत्व पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस नवाब सिंह करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने समिति को एक सप्ताह के भीतर किसानों के साथ बैठक बुलाने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने समिति से यह भी कहा है कि वह तुरंत शंभू बॉर्डर जाएं और उसे खुलवाने के लिए किसानों के साथ चर्चा करें। सुप्रीम कोर्ट ने किसानों से भी अपील करते हुए कहा है कि वह मुद्दे का राजनीतिकरण करने से बचें और गैरवाजिब डिमांड न करें।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई पॉवर कमेटी को विरोध कर रहे किसानों से जाकर मिलना चाहिए। कमेटी किसानों से आग्रह करे कि वह अपने ट्रैक्टर्स को सडकों पर से हटा लें। सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीद जताई कि जब किसानों की परेशानी को सही तरीके से सुना जाएगा, तो वह भी समिति की बात सुनेंगे और अपने ट्रैक्टर्स हटाकर मार्ग खोल देंगे। इससे आम जनता को बहुत राहत मिलेगी। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने किसानों को चेतावनी भी दी कि वह सियासी दलों से दूरी बनाकर रखें। अदालत ने अपने आदेश में आगे कहा कि पंजाब और हरियाणा सरकारों द्वारा सुझाए गए सभी नाम अपने विशिष्ट क्षेत्र में विख्यात और ईमानदार हैं। इसके अलावा वे लोग, ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में भी जानते हैं। 

शीर्ष अदालत ने कहा कि हमने गौर किया कि दोनों राज्यों में किसानों की एक बड़ी आबादी है। यह गरीबी रेखा से नीचे रहती है और सहानुभूति की पात्र है, इनके मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पिछली सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह किसानों की शिकायतों का हमेशा के लिए सौहार्दपूर्ण निराकरण करने के वास्ते जल्द ही एक बहुसदस्यीय समिति गठित करेगा। वहीं, 12 अगस्त को शीर्ष अदालत ने पंजाब सरकार से कहा था कि वह 13 फरवरी से शंभू बार्डर पर डेरा डाले बैठे किसानों को सड़क से ट्रैक्टर और ट्रॉलियां हटाने के लिए मनाए। कोर्ट ने ये भी कहा था कि राजमार्ग पार्किंग स्थल नहीं हैं। हालाँकि, अभी तक कोई समाधान निकल नहीं पाया है और अब सुप्रीम कोर्ट ने कमिटी बनाने का फैसला लिया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी बनाई थी कमिटी, लेकिन हुआ क्या ?

बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के दौरान भी एक कमिटी बनाई थी। सुप्रीम कोर्ट की इस कमिटी में कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और किसान नेता अनिल घनवट (शेतकारी संगठन के अध्यक्ष, महाराष्ट्र स्थित किसान संघ) सदस्य थे। जोशी भी कृषि शोध के क्षेत्र में एक प्रमुख नाम हैं।  वो हैदराबाद के नैशनल एकेडमी ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च मैनेजमेंट और नैशनल सेंटर फ़ॉर एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली के प्रमुख रह चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने 4 सदस्यीय टीम बनाई थी, लेकिन भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता भूपिंदर सिंह मान ने इससे अपने आप को अलग कर लिया था। इन लोगों को किसान संगठनों से बातचीत कर और किसानों की राय जानकर सुप्रीम कोर्ट को बताना था कि, देशभर के किसान वास्तव में कृषि कानूनों के बारे में क्या सोचते हैं ?

रिपोर्ट बनी और 21 मार्च 2021 को सर्वोच्च न्यायालय में जमा कर दी गई। सरकार इस फ़िराक़ में थी कि, सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट के बाद ही सही, लेकिन किसान इसके फायदे को समझेंगे और आंदोलन वापस ले लेंगे। किसान समझ भी जाते, अगर राजनेता उन्हें समझने देते, लेकिन विपक्ष को सरकार के खिलाफ जलती इस आग में लगातार ईंधन डालना था, राकेश टिकैत के साथ कई विपक्षी नेताओं ने भाषण दिए और उन्हें चुनावी रैलियों में आयोजित कर ये जाहिर कर दिया कि मामला किसानों का कम और राजनितिक अधिक है। हालाँकि, देश को ग्रेटा, रेहाना, मिया खलीफा जैसे लोगों के ट्वीट दिखाए जाते रहे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट नहीं। आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट का रास्ता देखकर थकने के बाद, 700 किसानों की मौत और 12 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 नवंबर 2021 को कृषि कानून वापस ले लिए। उनके शब्द थे, 'ये कानून किसानों के हित के लिए लाए गए थे और देश हित में वापस लिए जा रहे हैं।'    

रिपोर्ट जमा होने के लगभग एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट की वो रिपोर्ट सामने आई, जिस पर ज्यादा चर्चा भी नहीं हुई। मार्च 2022 में सामने आई, जिसमे बताया गया था कि, देश के 86 फीसद किसान संगठन इन कानूनों के पक्ष में हैं। SC की कमेटी ने 73 किसान संगठनों से बात की थी. इन संगठनों में 3.83 करोड़ किसान जुड़े थे, 61 किसान संगठनों ने तीनों कृषि कानूनों का समर्थन किया था. इसमें 3.3 करोड़ किसान थे। रिपोर्ट के अनुसार, 51 लाख किसानों वाले 4 संगठन कानूनों के खिलाफ थे। जबकि 3.6 लाख किसानों वाले 7 संगठन कुछ सुधारों के साथ कानूनों के समर्थन में थे. वहीं, 500 किसानों वाला एक संगठन कोई राय नहीं बना सका था। यानी कुछ 50 -60 लाख किसान इसके विरोध में थे, जबकि 3 करोड़ समर्थन में, फिर भी कानून वापस हो गए। क्योंकि, उन 50 लाख ने सड़कें जाम की, लाल किले पर हिंसा की, और समर्थक 3 करोड़ अपने खेतों में काम करते रहे। 

बाद में यूपी चुनाव (2022) में भाजपा की जीत के बाद उस समय किसान आंदोलन में शामिल योगेंद्र यादव ने कहा कि हमने तो विपक्ष के लिए पिच तैयार कर दी थी, विपक्ष ही इस पर बैटिंग नहीं कर सका। आप गौर करें तो पाएंगे कि, 700 किसानों कि लाशें और 12 लाख करोड़ का देश का नुकसान, विपक्ष को चुनाव जिताने की पिच थी।  अब देखना ये है कि, सुप्रीम कोर्ट की मौजूदा समिति क्या करती है ? क्या इससे कोई हल निकलता है या फिर इसकी रिपोर्ट भी पिछली कमिटी की तरह दबा दी जाती है। 

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