शिमला: पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, सड़कों, सुरंगों और भवनों के अवैज्ञानिक तरीके से निर्माण के कारण हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों पर अब खतरा बढ़ने लगा है. इससे हिमालय की उच्च और मध्यवर्ती पहाड़ों की मुख्य संरचना में तेज़ी से बदलाव आ रहा है. पहाड़ों की मजबूती की मुख्य सतह यानी मेन सेंट्रल क्रस्ट (एमसीटी) और मेन बाउंड्री क्रस्ट (एमबीटी) इन्ही कारणों से कमजोर पड़ने लगी है. इससे सम्बंधित इलाकों में भूस्खलन, बादक फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भीषण खतरा उत्पन हो गया है.
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आईआईटी मंडी में प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के ‘भूस्खलन की रोकथाम एवं पुनर्वास’ पर आयोजित किया गया एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में वैज्ञानिकों ने इस पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि पहाड़ों से छेड़छाड़ नहीं रुकी तो हिमाचल में भूस्खलन की घटनाओं को रोकना बेहद मुश्किल होगा. प्रशिक्षण कार्यक्रम 2017 में कोटरोपी में हुए भूस्खलन पर केंद्रित था, जिसमे 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.
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वैज्ञानिकों ने बताया कि जो सतह ऊपर की हुई उसे एमबीटी कहा जाता हैं, जिसमें काफी कम बदलाव होते हैं, लेकिन भीतरी सतह एमसीटी में बदलाव तेज़ी से हो रहे हैं और ये भीषण प्राकृतक आपदा का संकेत है. वैज्ञानिकों ने इस कार्यक्रम में शामिल हुए प्रतिभागियों से पिछले साल की बड़ी आपदाओं को ध्यान में रखते हुए भूस्खलन की रोकथाम एवं पुनर्वास के उपायों को विकसित करने के लिए कहा है, इस अध्ययन से संबंधित सामग्री की रिपोर्ट जल्द प्रदेश सरकार को प्रस्तुत की जाएगी.
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