नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक अहम फैसले में बोला है कि किसी भी दोषी को फांसी या मृत्युदंड तभी मिलना चाहिए, जब उसके सुधार की सारी उम्मीदें और गुंजाइश पूरी तरह से खत्म हो गई हो। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस PS नरसिम्हा की पीठ ने मंगलवार को इस बात की महत्ता पर जोर दिया कि एक दोषी के सुधार की गुंजाइश है या नहीं, यह निर्धारित करने वाली स्थितियां और परिस्थितियां होना जरुरी है, बता दें कि 21 मार्च के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की खंडपीठ ने सुंदरराजन नाम के शख्स की मौत की सजा घटाकर 20 वर्ष कैद में तब्दील की गई है। सुंदरराजन को वर्ष 2009 में 7 साल के एक बच्चे का अपहरण और उसका क़त्ल करने का दोषी पाया गया था और उसे सजा-ए-मौत दी गई थी।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस PS नरसिम्हा की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए सुंदरराजन की सजा को तो बरकरार रखा, लेकिन मौत की सजा 20 वर्ष की कैद में तब्दील कर दिया। इस बीच कोर्ट ने टिप्पणी की कि किसी भी आपराधिक कृत्य के दोषी की सजा को कम करने वाले कारकों में आरोपी की पृष्ठभूमि, हिरासत या कैद की अवधि में जेल में उसका आचरण या उसका आपराधिक इतिहास भी जुड़ा हुआ हो।
इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बोला है कि जब दोषी में सुधार की सारी संभावनाएं समाप्त हो जाए, तभी उसके मृत्युदंड पर विचार भी किया जाना जरुरी है। खंडपीठ ने शीर्ष अदालत के 2013 के एक फैसले के विरुद्ध सुंदरराजन द्वारा दायर समीक्षा याचिका की सुनवाई करते हुए यह निर्णय सुना दिया था। 2013 में शीर्ष अदालत ने सुंदरराजन की मौत की सजा के निचली अदलात के फैसले को बरकरार रखा था। समीक्षा याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत तमिलनाडु के कुड्डालोर में कम्मापुरम पुलिस स्टेशन के पुलिस निरीक्षक के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही भी शुरू करने का आदेश भी जारी कर दिया है। कोर्ट ने पुलिस अधिकारी को गलत हलफनामा दाखिल करने और जेल में बंद याचिकाकर्ता के आचरण को छुपाने का आरोपी माना है और रजिस्ट्री से अधिकारी के विरुद्ध स्वत: संज्ञान लेकर नोटिस जारी करने को बोला है।
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