1980 के दशक में जब देश की राजनीती पर इंदिरा गाँधी का राज चला करता था तब इंदिरा के साथ एक वाकया ऐसा हुआ जिसने पिछले दिनों काफी सुर्खिया बटोरी. अब एक बार फिर ये मामला चर्चा का विषय बना हुआ है. दरअसल 1982 में जब इंदिरा देश की प्रधानमंत्री हुआ करती थी, तब उनका अक्सर सरकारी गाड़ियों से ही आना जाना होता था. लेकिन एक रोज इंदिरा की गाडी नो पार्किंग में खड़ा पाकर, ट्रेफिक नियमों के उन्लंघन के तहत तत्कालीन डीसीपी (ट्रैफिक) किरण बेदी ने उठवा लिया था. यानी इंदिरा की गाडी का चालान काट दिया था. इसके बाद से ही किरण को निडर और जज्बे वाली अफसर के रूप में जाना जाने लगा था. हालांकि इस बात को लेकर कई मतभेद भी हुए.
बाद में कहा गया की ये चालान किरण ने नहीं बल्कि एक सबइंस्पेक्टर ने काटा था. नाम है निर्मल सिंह घुम्मन. घुम्मन की कहानी भी काफी रोचक है उन्होंने खुद मीडिया के सामने आ मामले पर सफाई थी. निर्मल सिंह घुम्मन के मुताबिक, जिस गाडी का चालान काटा गया था वो इंदिरा गाँधी की नहीं बल्कि प्रधानमंत्री कार्यालय की थी. घटना की जानकारी देते हुए घुम्मन कहते है, 'अगस्त 1982 में उस समय मैं संसद मार्ग थाने का जोनल ऑफिसर (एसआई ट्रैफिक) था. मिंटो रोड के समीप यार्क होटल के सामने कार एक्सेसरीज की दुकानें थी. दुकानदार गाड़ियां सड़क पर खड़ी कर उनमें एसेसरीज लगाते थे, जिसके चलते आउटर सर्किल में जाम रहता था. मैं अक्सर वहां पर गाड़ियों का चालान करता था. इसके चलते दुकानदार की एसोसिएशन ने कांग्रेसी नेता रमेश हांडा से मेरी शिकायत की थी. एक दिन मेरे पास हांडा ने संदेश भिजवाया कि आज वहां गाड़ियों का चालान करके दिखाओ.'
वो आगे बताते है, "शाम लगभग पांच बजे मैं गश्त करने निकला तो देखा सड़क पर सफेद रंग की एंबेसडर कार खड़ी है। उसका नंबर डीएचडी 1718 था. मैंने वहां जाकर इस गाड़ी के ड्राइवर के बारे में पूछा. जब जवाब नहीं मिला तो मैंने क्रेन मंगवाकर उस गाड़ी को उठवा लिया.रमेश हांडा ने मेरे पास आकर कहा कि तुम जानते हो यह किसकी गाड़ी है. मैंने जवाब दिया कि यह गाड़ी प्रधानमंत्री कार्यालय की है और कानून सबके लिए बराबर है. यह गाड़ी मैं जब क्रेन से ले जाने लगा तो आगे रमेश हांडा आ गए. उन्होंने गाड़ी को छोड़ने के लिए कहा. मैंने 100 रुपये का चालान करने के बाद गाड़ी को छोड़ दिया था."
तो घुम्मन के मुताबिक मामला कुछ यूं था..हालांकि कहने वाले ये भी कहते है कि घुम्मन की बात बिलकुल सही है लेकिन अफसर होने के नाते इस पूरी कार्यवाई के दौरान बेदी भी वहां मौजूद थी. यहां तक कि बात जब इंदिरा के चुटपुँजिये नेताओ तक पहुंची और उन्होंने बेदी से घुम्मन के खिलाफ एक्शन लेने की बात की तब किरण का जवाब था, "मैं घुम्मन को सजा देने के बजाए इनाम दूंगी."
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