नई दिल्ली: रिपब्लिक टीवी के मुख्य संपादक अर्नब गोस्वामी और कांग्रेस पार्टी के बीच चल रहे कानूनी विवाद ने व्यापक चर्चा का विषय बना दिया है। यह मामला केवल कोर्टरूम ड्रामा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यक्तिगत और जटिल मुद्दे को उजागर करता है: कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी की धार्मिक पहचान। इस विवाद ने राजनीतिक निहितार्थों के साथ-साथ गांधी परिवार की आस्था पर भी सवाल उठाए हैं।
यह विवाद अप्रैल 2020 में तब शुरू हुआ, जब महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं की हत्या के बाद अर्नब गोस्वामी ने एक टेलीविज़न कार्यक्रम में सोनिया गांधी पर सवाल उठाए। उन्होंने उन्हें उनके इतालवी जन्म के नाम "एंटोनिया माइनो" के रूप में संदर्भित किया, जिसे उनके विदेशी मूल और ईसाई पृष्ठभूमि को उजागर करने के रूप में देखा गया। इस संदर्भ को लेकर कांग्रेस पार्टी ने गोस्वामी के खिलाफ FIR दर्ज की, आरोप लगाते हुए कि उनकी टिप्पणियाँ सांप्रदायिक घृणा भड़काने के इरादे से की गई थीं। इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सोनिया गांधी का बचाव करते हुए यह स्वीकार किया कि सोनिया गांधी ईसाई धर्म का पालन करती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि गोस्वामी का हमला केवल उनकी राजनीतिक पहचान पर नहीं, बल्कि उनकी धार्मिक पहचान पर भी केंद्रित था। इससे अदालत में सोनिया गांधी की धार्मिक मान्यताओं को लेकर नई बहस छिड़ गई।
सोनिया गांधी का जन्म इटली के लुसियाना में हुआ था, और उन्होंने 1968 में राजीव गांधी से विवाह किया। राजीव गांधी का परिवार हिंदू परंपराओं में गहराई से निहित रहा है, लेकिन सोनिया गांधी का ईसाई धर्म में आस्था रखना एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है। हालांकि, कई सालों से उनके विदेशी मूल और ईसाई पहचान को राजनीतिक विरोधियों द्वारा भुनाया जाता रहा है। कपिल सिब्बल के बयान ने इस तथ्य को स्पष्ट किया कि सोनिया गांधी ने ईसाई धर्म को बनाए रखा है, जबकि वे हिंदू परिवार में शादी कर चुकी हैं। यह स्थिति उन प्रश्नों को जन्म देती है कि क्या उनकी धार्मिक पहचान ने उनके राजनीतिक करियर और व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित किया है। यह ध्यान देने योग्य है कि सोनिया गांधी ने वर्षों से अपनी धार्मिक पहचान को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नहीं किया है।
इस तरह राहुल गांधी की धार्मिक पहचान भी जटिल हो जाती है। चुनावी अभियानों के दौरान, उन्होंने हिंदू मंदिरों में यात्रा की है और उन्हें "जनेऊधारी ब्राह्मण" के रूप में पेश किया गया है। यह दावा विशेष रूप से सवर्ण जाति के हिंदू मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए किया गया था। हालांकि, यह सवाल उठता है कि यदि सोनिया गांधी ईसाई हैं, तो राहुल गांधी ने हिंदू ब्राह्मण की पहचान क्यों अपनाई? क्या यह व्यक्तिगत आस्था का परिणाम है या राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है? इस संदर्भ में, राहुल गांधी द्वारा हिंदू धर्म का प्रदर्शन, खासकर उनके मंदिर दौरे और ब्राह्मण होने की घोषणाएं, राजनीतिक प्रेरणाओं पर सवाल उठाते हैं। मौजूदा समय में भी राहुल गांधी सबकी जाति पूछते नज़र आ रहे हैं, लोको पायलट से लेकर, पत्रकारों और प्रधानमंत्री तक की जाति पर उन्होंने सवाल उठाए हैं। हालाँकि, जब सांसद अनुराग ठाकुर ने उनसे उनकी जाति बताने के लिए कहा तो संसद में राहुल गांधी कहने लगे कि, मुझे गाली दी जा रही है। कुछ आलोचकों का कहना है कि यह सब भाजपा के हिंदू राष्ट्रवादी रुख का मुकाबला करने के लिए एक रणनीतिक कदम है।
इस कानूनी विवाद ने केवल सोनिया और राहुल गांधी की धार्मिक पहचान को ही नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के पूरे परिदृश्य को भी प्रभावित किया है। भारत में धर्म हमेशा से राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इस संदर्भ में, कांग्रेस पार्टी ने कई बार भाजपा के धार्मिक बहुसंख्यकवाद के खिलाफ आवाज उठाई है, लेकिन राहुल गांधी की हिंदू पहचान को प्रकट करना यह दर्शाता है कि कांग्रेस भी धार्मिक पहचान के महत्व को समझती है।
इस विवाद ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए धार्मिक पहचान का उपयोग कर रहे हैं। अर्नब गोस्वामी के खिलाफ दर्ज की गई FIR को राजनीतिक प्रेरणा के रूप में देखा गया है। हरीश साल्वे ने तर्क दिया कि यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का प्रयास है। अर्नब गोस्वामी और कांग्रेस के बीच कानूनी विवाद ने केवल व्यक्तिगत और राजनीतिक सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भारतीय राजनीति में धार्मिक पहचान की भूमिका को भी उजागर करता है। सोनिया गांधी की धार्मिक पहचान और राहुल गांधी की हिंदू पहचान के बीच का द्वंद्व राजनीतिक विमर्श में एक नया आयाम जोड़ता है।
यह स्पष्ट है कि भारतीय राजनीति में धर्म और पहचान के सवाल हमेशा महत्वपूर्ण रहेंगे। गांधी परिवार की धार्मिक पहचान और उसके राजनीतिक निहितार्थ पर बहस आगे भी जारी रहेगी, क्योंकि यह न केवल कांग्रेस पार्टी के लिए बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए भी एक महत्वपूर्ण विषय है।
अब मणिपुर को भारत से अलग करने की मांग, ब्लैक डे मनाएंगे उग्रवादी गुट
'योगी सरकार का फैसला सही..', आज़म खान और सिब्बल को CJI चंद्रचूड़ ने लताड़ा