नाबालिग के बलात्कार में शाहजहां को हुई थी उम्रकैद, फिर हाईकोर्ट को आई दया और कर दिया बरी..!

नाबालिग के बलात्कार में शाहजहां को हुई थी उम्रकैद, फिर हाईकोर्ट को आई दया और कर दिया बरी..!
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नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने लोगों के बीच कई सवाल खड़े कर दिए हैं। 14 वर्षीय नाबालिग के साथ बलात्कार करने के आरोपी शाहजहाँ अली को अदालत ने उम्रकैद की सजा से बरी कर दिया। निचली अदालत ने इस मामले में शाहजहाँ को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन हाई कोर्ट ने पीड़िता के बयान को आधार बनाकर फैसला पलट दिया।  

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला 2017 का है, जब दिल्ली के मधु विहार थाना क्षेत्र में 14 साल की एक लड़की के लापता होने की शिकायत दर्ज हुई थी। उसकी माँ ने पुलिस को बताया कि बेटी स्कूल गई थी लेकिन घर नहीं लौटी। पुलिस ने खोजबीन शुरू की और उसी दिन फरीदाबाद से आरोपी शाहजहाँ अली को गिरफ्तार कर लिया। लड़की को भी उसी दिन पुलिस ने आरोपी के पास से बरामद कर लिया। मेडिकल जाँच में यह सामने आया कि लड़की के शरीर पर किसी तरह की बाहरी चोट के निशान नहीं थे। 20 मार्च 2017 को लड़की ने अदालत में बयान दिए, जिसमें उसने कहा कि वह अपनी मर्जी से शाहजहाँ के साथ गई थी और उनके बीच शारीरिक संबंध बने थे। उसने यह भी कहा कि शाहजहाँ ने उसे किसी भी तरह की शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना नहीं दी थी।  शाहजहाँ अली, जो उस समय 22 साल का था, पीड़िता का डेढ़ साल से परिचित था। लड़की के बयान के बाद पुलिस ने इस मामले में अपहरण, बलात्कार और पॉक्सो एक्ट की धाराएँ जोड़ दीं। मामला अदालत में गया और निचली अदालत ने 2018 में शाहजहाँ को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।  

हालांकि, हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पीड़िता ने फिर से यह स्वीकार किया कि शाहजहाँ ने उसे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाया। लड़की ने उसे अपना बॉयफ्रेंड बताया और कहा कि वह अपनी मर्जी से उसके साथ गई थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस बयान को ध्यान में रखते हुए कहा कि शारीरिक संबंध को यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता ने किसी भी प्रकार की प्रताड़ना का जिक्र नहीं किया, जिससे यह मामला यौन उत्पीड़न के तहत नहीं आता। इस फैसले के बाद शाहजहाँ अली को जेल से रिहा कर दिया गया। 

हालाँकि, हाई कोर्ट शायद यह भूल गई कि यौन संबंधों में नाबालिगों की सहमति नहीं मानी जाती, वरना इस तरह के आरोपी किसी भी बच्ची को चॉकलेट या कोई और प्रलोभन देकर अपनी हवस का शिकार बना सकते हैं। क्या ये वही अदालत नहीं है, जो बाल विवाह पर ये कहकर रोक लगाती है कि 18 वर्ष से पहले लड़की मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह विकसित नहीं होती ? जब 18 वर्ष से कम उम्र की बच्ची अपनी मर्जी से शादी नहीं कर सकती, तो अपनी मर्जी से यौन संबंध कैसे बना सकती है ? ये तथ्य है कि उसे बहकाया गया होगा, और जिसने बहकाया उसे सजा मिलनी चाहिए, किन्तु अदालतें हैं, उन्हें अधिकार है, जो चाहे कर सकती हैं।    

यह फैसला कई लोगों के लिए हैरान करने वाला रहा, क्योंकि निचली अदालत ने इसी मामले में शाहजहाँ को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। सवाल यह उठता है कि क्या निचली अदालत ने सबूतों की ठीक से जाँच नहीं की, या फिर उसके पास कानून की समझ में कमी थी? दिल्ली हाई कोर्ट का यह कहना कि "शारीरिक संबंध को यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता" अपने आप में एक विवादास्पद बयान है। यह सवाल उठाता है कि नाबालिग से जुड़े ऐसे मामलों में अदालतें किस हद तक सहानुभूति या सख्ती दिखाती हैं।  

इस फैसले ने यह भी दिखाया है कि भारत में न्याय व्यवस्था कभी-कभी निचली अदालतों और उच्च अदालतों के बीच निर्णयों में बड़े अंतर को उजागर करती है। पीड़िता के परिवार और समाज के लिए यह फैसला भले ही असहज करने वाला हो, लेकिन अदालत ने इसे "कानून के मुताबिक" सही ठहराया है।

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