इस समय गणेश चतुर्थी का पावन पर्व चल रहा है. आप जानते ही होंगे कल यानी 1 सितंबर को गणेश विसर्जन होन वाला है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान गणेश और शनिदेव की एक कथा.
पहले तो हम आपको यह भी बता दें कि शिव महापुराण के अनुसार भगवान गणेश के शरीर का रंग हरा और लाल है. जी दरअसल ब्रह्मवर्ती पुराण को माना जाए तो पुत्र की प्राप्ति के लिए मां पार्वती ने पुण्यक व्रत रखा था. वहीं कहा जाता है इसी व्रत का फल मिला था जिसके कारण भगवान कृष्ण ने मां पार्वती के यहां पुत्र के रूप में जन्म लिया था. वहीं ब्रह्मवावर्त पुराण को माने तो जब सभी देवी-देवता भगवान गणेश को अपना आशीर्वाद दे रहे थे तब शनि देव उनसे मुंह फेरकर खड़े थे. जब मां पार्वती ने शनि देव से उनके इस कृत्य का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि अगर उनकी सीधी दृष्टि गणेश जी पर पड़ गई तो उनका सिर धड़ से अलग हो जाएगा. लेकिन मां पार्वती ने उनकी एक बात नहीं मानी और उन्हें गणेश जी की ओर देखकर आशीर्वाद देने को कहा.
इस वजह से गणेश का सिर उनके धड़ से अलग हुआ था. ब्रह्मवावर्त पुराण की मानें तो शनि देव की सीधी दृष्टि गणेश जी पर पड़ने के दौरान उनका सिर धड़ से अलग हो गया था. तब भगवान श्री हरि ने अपने गरुड़ पर सवार होकर उत्तर दिशा की ओर पुष्पभद्रा नदी के पास एक हथिनी के पास सो रहे उसके शिशु का सिर लाकर भगवान गणेश के सिर पर लगाया और उन्हें नया जीवनदान दिया.ब्रह्मवावर्त पुराण के अनुसार भगवान शिव ने क्रोध में आकर त्रिशूल से सूर्य देव पर प्रहार किया था. तब सूर्य देव के पिता ने क्रोधित होकर भगवान शिव को ये श्राप दिया था कि एक दिन उनके बेटे का सिर भी उसके शरीर से अलग हो जाएगा.
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