हिंदू रीति-रिवाज में शरद पूर्णिमा का खासा महत्व है। जी हाँ और हिंदू पंचांग के अनुसार, शरद पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा को आती हैं। ऐसी मान्यता है कि सालभर में सिर्फ इसी दिन चांद 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। आपको बता दें कि शरद पूर्णिमा को 'कौमुदी व्रत', 'कोजागरी पूर्णिमा' और 'रास पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। जी हाँ और इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। ऐसा कहा जाता है शरद पूर्णिमा की रात को चांद की किरणों से अमृत बरसता है।
जी हाँ और इसी वजह से इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रातभर चांदनी में रखने का रिवाज है। इस साल शरद पूर्णिमा का व्रत 9 अक्टूबर को मनाया जाने वाला है। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि च्यवन ऋषि को आरोग्य का पाठ और औषधि का ज्ञान अश्विनी कुमारों ने ही दिया था। जी हाँ और यही ज्ञान आज हजारों साल बाद भी परंपरा के रूप में संचित है। अश्विनी कुमार आरोग्य के दाता हैं और पूर्ण चंद्रमा अमृत का स्रोत। जी हाँ और इसी वजह से ऐसा माना जाता है कि इस पूर्णिमा को आसमान से अमृत की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा की रात को घरों की छतों पर खीर रखने का प्रचलन भी है। ऐसा कहते है कि ऐसा करने से चंद्रमा की अमृत की बूंदें भोजन में आ जाती हैं, जिसका सेवन करने से सभी प्रकार की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
क्यों मनाई जाती है शरद पूर्णिमा?- जी दरअसल इस बारे में एक किवदंती है कि एक साहूकार की दो बेटियां थीं। दोनों ही पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। हालांकि, बड़ी बेटी पूरा व्रत करती थी, लेकिन छोटी बेटी अधूरा व्रत करती थी। इसका नतीजा यह हुआ कि छोटी बेटी की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसकी वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। अब पूरे विधि-विधान से पूजा करके ही तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है। यह सुनकर छोटी बेटी ने विधि-विधान से शरद पूर्णिमा का व्रत किया। इसके बावजूद उसकी संतान पैदा होते ही मर गई। इस बात से आहत होकर छोटी बेटी ने संतान को लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया।
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फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और उसी जगह पर बैठने को कहा, जहां उसने अपनी संतान को कपड़े से ढंका था। जब उसकी बड़ी बहन बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे को छू गया और वह रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझ पर कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से बच्चा मर जाता। इस पर छोटी बहन ने उसे बताया कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जिंदा हुआ है। इस घटना के बाद से वह हर साल शरद पूर्णिमा का पूरा व्रत करने लगी।
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