मुंबई: शेयर मार्केट में एक सितंबर से आम निवेशकों के लिए नियम बदल जाएंगे। अब वे ब्रोकर की तरफ से मिलने वाली मार्जिन का फायदा नहीं ले सकेंगे। जितना पैसा वे अपफ्रंट मार्जिन के रूप में ब्रोकर को देंगे, उतने के ही शेयर खरीद सकेंगे। इसे लेकर कई शेयर ब्रोकर्स को चिंता है कि वॉल्युम नीचे आ जाएगा। आइए समझते हैं क्या है SEBI का ये यह नया नियम ?
अब तक क्या है मार्जिन लेने की प्रक्रिया?
बता दें कि मार्जिन दो प्रकार की होती है। एक होती है कैश मार्जिन। जिसमे आपने जितना पैसा आपके ब्रोकर को दिया है, उसमें कितना सरप्लस है, उतने की ही आप बाजार में खरीदी-बिक्री कर सकते हैं। दूसरी होती है स्टॉक मार्जिन। इस प्रोसेस में ब्रोकरेज हाउस आपके डीमैट अकाउंट से स्टॉक्स अपने अकाउंट में ट्रांसफर करते हैं और क्लियरिंग हाउस के लिए प्लेज मार्क हो जाती है। इस सिस्टम में अगर कैश मार्जिन के ऊपर ट्रेडिंग में कोई घाटा होता है, तो क्लियरिंग हाउस प्लेज मार्क किए स्टॉक को बेचकर राशि वसूल कर सकता है।
क्या होगा नया सिस्टम?
SEBI ने मार्जिन ट्रेडिंग को नए सिरे से निर्धारित किया है। अब तक प्लेज सिस्टम में निवेशक की भूमिका कम और ब्रोकरेज हाउस की अधिक रहा करती थी। ब्रोकर ही निवेशक की ओर से कई सारे काम कर लिया करते थे। नए सिस्टम क अंतर्गत स्टॉक्स आपके अकाउंट में ही रहेंगे और वहीं पर क्लियरिंग हाउस प्लेज मार्क कर देगा। इससे आपके स्टॉक्स ब्रोकर के खाते में नहीं जाएंगे। मार्जिन निर्धारित करना आपके अधिकार में रहेगा। प्लेज ब्रोकर के पक्ष में मार्क हो जाएगी। ब्रोकर को अलग से डीमैट अकाउंट ओपन करना होगा। ‘TMCM- क्लाइंट सिक्योरिटी मार्जिन प्लेज अकाउंट’। यहां TMCM का मतलब है ट्रेडिंग मेंबर क्लियरिंग मेंबर। तब ब्रोकर को इन सिक्योरिटी को क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के फेवर में वापस से प्लेज करना होगा। तब आपके खाते में अतिरिक्त मार्जिन मिल जाएगी। अगर मार्जिन में एक लाख रुपए से कम का शॉर्टफॉल रहता है तो 0.5 फीसद का जुर्माना लगेगा। इसी तरह एक लाख से अधिक के शॉर्टफॉल पर यही पेनल्टी 1 फीसद की रहेगी। अगर लगातार तीन दिन मार्जिन शॉर्टफॉल रहता है या माह में पांच दिन शॉर्टफॉल रहता है तो उस पर 5 फीसद पेनल्टी लगेगी।
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