कोच्ची: युवा कांग्रेस द्वारा आज यानि रविवार (20 नवंबर) को केरल के कोझीकोड में ‘संघ परिवार और धर्मनिरपेक्षता के लिए चुनौतियाँ’ विषय पर वार्ता का आयोजन किया जा रहा है। अब आयोजकों ने इसकी मेजबानी से कांग्रेस के लोकसभा सांसद शशि थरूर को हटा दिया है। यही नहीं, कांग्रेस या युवा कांग्रेस ने इसके पीछे कोई कारण भी नहीं बताया है। बता दें कि थरूर उत्तरी केरल के चार दिवसीय दौरे पर हैं।
थरूर के दौरे के बीच कोझीकोड जिला युवा कांग्रेस ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था। हालाँकि, अंतिम वक़्त में थरूर को इस आयोजन से अलग कर दिया गया। माना जा रहा है कि कांग्रेस का ही एक धड़ा, थरूर को बुलाने से खफा चल रहा था। इसको लेकर थरूर ने कहा कि, 'जब भी मैं कोझीकोड में होता हूँ, DCC मुझे एक कार्यक्रम में आमंत्रित करता है। मुझे लगा कि यह एक समान निमंत्रण था। जो मैं समझता हूँ, उन्हें कुछ असुविधा हुई, मगर मुझे इससे कोई समस्या नहीं है। वैसे भी कोझीकोड में मेरा कार्यक्रम व्यस्त है।'
जब थरूर से मीडियाकर्मियों ने सवाल किया कि क्या उनका बढ़ता कद किसी के लिए खतरा है ? इस पर थरूर ने जवाब दिया कि, 'मैं किसी से नहीं डरता और मुझे नहीं लगता कि किसी को भी मुझसे डरना चाहिए।' बता दें कि, कोझीकोड के सांसद एमके राघवन भी इस कार्यक्रम में शिरकत कर रहे हैं। राघवन वही हैं, जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में थरूर का समर्थन किया था। थरूर, कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में उम्मीदवार थे और वे गांधी परिवार द्वारा समर्थित प्रत्याशी मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ चुनाव लड़े थे, मगर हार गए। इससे पहले थरूर ने गांधी परिवार के सामने कई बार कांग्रेस में संगठनात्मक परिवर्तन करने की मांग रखी थी, इससे भी गांधी परिवार उनसे कुछ नाराज़ बताया जा रहा था।
इस कार्यक्रम से थरूर को हटाने को लेकर यूथ कांग्रेस की राज्य इकाई के उपाध्यक्ष और पूर्व MLA केएस सबरीनाधन ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि, 'इस कार्यक्रम के जरिए थरूर उत्तरी केरल में कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष रुख को उजागर कर सकते थे, मगर मीडिया से मुझे पता चला कि कुछ लोगों द्वारा इस कार्यक्रम को बदलने का निर्देश दिया गया था।' बता दें कि, शनिवार की शाम को थरूर ने कोझीकोड के सांसद एमके राघवन के साथ थमारसेरी कैथोलिक बिशप बिशप रेमिगियोस इनचानानियिल के साथ मुलाकात की। बिशप को किसानों के मुद्दों को उठाने के लिए जाना जाता है और थरूर की पादरियों से मुलाकात को ईसाई समुदाय के किसानों का भरोसा जीतने की कोशिश के रूप में देखा जाता है।
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