बॉलीवुड के जाबाज़ एक्टर 'शत्रुघ्न सिन्हा' अक्सर अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते है. सिन्हा ने अपने फ़िल्मी करियर में हर तरह के किरदार निभाए है. फिर चाहे वो ममतामय किरदार हो या फिर खलनायक की भूमिका शत्रुघ्न हर किरदार में खूब जचते है. शत्रुघ्न ने अपने करियर की शुरुआत में सपोर्टिंग रोल्स किये थे लेकिन उनकी शानदार एक्टिंग को देखते हुए जल्द ही वे मुख्य अभिनेता के तौर पर चुने जाने लगे. शत्रुघ्न ने अपने इतने लम्बे फ़िल्मी करियर में आज तक 'दीवार' और 'शोले' जैसी शानदार फिल्म नहीं देखी है और उन्हें इस बात का अफ़सोस भी है.
जी हाँ... एक इंटरव्यू के दौरान शत्रुघ्न ने अपने करियर के उतार-चढ़ाव का जिक्र किया और बताया कि, "मैंने 'शोले' और 'दीवार' जैसी फिल्में ठुकरा दीं. इसके बाद यह फिल्में अमिताभ बच्चन ने कीं और वह सदी के महानायक बन गए.'' शत्रुघ्न ने बताया कि, "यह फिल्में ना करने का अफसोस मुझे आज भी है लेकिन इस बात की खुशी है कि इन्हीं फिल्मों ने मेरे दोस्त को स्टार बना दिया. यह फिल्में ना करना मेरी गलती थी और इस गलती को ध्यान में रखते हुए मैंने कभी भी इन दोनों फिल्मों को नहीं देखा."
अपने फेमस डायलॉग खामोश के बारे में बताते हुए शत्रुघ्न ने बताया कि, "अब लगता है कि हम सब खामोश हो गए हैं. देश में जो माहौल चल रहा है, उसमें सब कोई खामोश है." अपने खलनायकी वाले किरदार के बारे में बताते हुए शत्रुघ्न कहते है कि, "मैंने विलेन के रोल में होकर कुछ अलग किया. मैं पहला विलेन था, जिसके परदे पर आते ही तालियां बजती थीं. ऐसा कभी नहीं हुआ. विदेशों के अखबारों में भी यह आया कि पहली बार हिन्दुस्तान में एक ऐसा खलनायक उभरकर आया, जिस पर तालियां बजती हैं. अच्छे-अच्छे विलेन आए, लेकिन कभी किसी का तालियों से स्वागत नहीं हुआ. ये तालियां मुझे निर्माताओं-निर्देशकों तक ले गईं. इसके बाद निर्देशक मुझे विलेन की जगह हीरो के तौर पर लेने लगे."
आगे उन्होंने बताया कि, "एक फिल्म आई थी 'बाबुल की गलियां', जिसमें मैं विलेन था, संजय खान हीरो और हेमा मालिनी हीरोइन थीं. इसके बाद जो फिल्म आई 'दो ठग', उसमें हीरो मैं था और हीरोइन हेमा मालिनी थीं. मनमोहन देसाई को कई फिल्मों में अपना अंत बदलना पड़ा. 'भाई हो तो ऐसा', 'रामपुर का लक्ष्मण' ऐसी ही फिल्में हैं."
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