हर साल शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है ऐसे में आने वाले कल यानि 15 अप्रैल को शीतला अष्टमी है. आप सभी को बता दें कि शीतलाष्टमी देश के अलग-अलग भागों में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में अलग-अलग तिथियों को मानाया जाता है. जी दरअसल बिहार, पूर्वांचल, उड़ीसा में बैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी को ये पर्व मनाया जाता है और शीतला अष्टमी को ही कई जगहों पर बसौड़ा या बसोरा भी कहा जाता है.
जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में ताजे भोजन के लिए चूल्हा नहीं जलाना चाहिए. आप सभी को बता दें कि इस पर्व का वैज्ञानिक महत्व भी है. जी दरअसल, शीतला अष्टमी का व्रत मौसम में परिवर्तन का भी सूचक है और आम तौर पर इसके बाद गर्मी की शुरुआत होने लगती है और इसलिए आज के बाद बासी खाना बंद कर दिया जाता है. इसलिए कोशिश करें कि आप भी चूल्हा ना जलाएं.
आइए जानते हैं शीतला माता का स्वरूप - शीतला माता के स्वरूप की बात करें तो वह गर्दभ यानी गधे पर सवार होती हैं. इसी के साथ उनके एक हाथ में झाड़ी है और वह नीम के पत्तों के आभूषण में दिखती हैं. इसके अतिरिक्त माँ के दूसरे हाथ में ठंडे जल का कलश भी दिखता है. अगर पौराणिक मान्यताओं को माना जाए तो शक्ति के दो स्वरूप माने जाते हैं पहला देवी दुर्गा और दूसरा माता पार्वती का. शीतला माता को इन दोनों स्वरूपों का अवतार माना जाता है.
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