शीतला सप्तमी 2020 – व्रत कथा व पूजा विधि
वैसे तो हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी व्रत त्यौहार आदि के रूप में मनाया जाता है परन्तु कुछ दिन विशेष रूप से खास होते हैं जिनकी लोक जीवन में बहुत ज्यादा मान्यता होती है। इसके साथ ही शीतला सप्तमी इन्हीं खास दिनों में से एक है। वहीं शीतला माता खास कर उत्तर भारत में तो रोगों को दूर करने वाली मानी जाती हैं। इसके साथ ही चिकन पोक्स यानि चेचक नामक रोग को आम बोलचाल की भाषा में माता ही कहा जाता है। वहीं शीतला माता की कृपा पूरे परिवार बनी रहे इसलिये शीतला सप्तमी-अष्टमी का उपवास भी रखा जाता है और इस दिन माता की पूजा की जाती है। इसके साथ ही इस उपवास की खास बात यह है कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता और माता के प्रसाद सहित परिवार के समस्त जनों के लिये भोजन पहले दिन ही बकाया जाता है मतलब बासी भोजन ग्रहण किया जाता है। इसी कारण इसे बसौड़ा, बसौरा आदि भी कहा जाता है।
शीतला सप्तमी व्रत की कथा
शीतला सप्तमी के व्रत की कई कथाएं प्रचलित हैं एक कथा के मुताबिक एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया व उसकी दो बहुओं ने व्रत रखा। उस दिन सभी को बासी भोजन ग्रहण करना था। इसलिये पहले दिन ही भोजन पका लिया गया था। लेकिन दोनों बहुओं को कुछ समय पहले ही संतान की प्राप्ति हुई थी कहीं बासी भोजन खाने से वे व उनकी संतान बिमार न हो जायें इसलिये बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा अर्चना के पश्चात पशओं के लिये बनाये गये भोजन के साथ अपने लिये भी रोट सेंक कर उनका चूरमा बनाकर खा लिया। जब सास ने बासी भोजन ग्रहण करने की कही तो काम का बहाना बनाकर टाल गई। उनके इस कृत्य से माता कुपित हो गई और उन दोनों के नवजात शिशु मृत मिले। जब सास को पूरी कहानी पता चली तो उसने दोनों को घर से निकाल दिया। दोनों अपने शिशु के शवों को लिये जा रही थी कि एक बरगद के पास रूक विश्राम के लिये ठहर गई। वहीं पर ओरी व शीतला नामक दो बहनें भी थी जो अपने सर में पड़ी जूंओं से बहुत परेशान थी। दोनों बहुओं को उन पर दया आयी और उनकी मदद की सर से जूंए कम हुई तो उन्हें कुछ चैन मिला और बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाये उन्होंने कहा कि हरी भरी गोद ही लुट गई है इस पर शीतला ने लताड़ लगाते हुए कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा। बहुओं ने पहचान लिया कि साक्षात माता हैं तो चरणों में पड़ गई और क्षमा याचना की, माता को भी उनके पश्चाताप करने पर दया आयी और उनके मृत बालक जीवित हो गये। तब दोनों खुशी-खुशी गांव लौट आयी। इस चमत्कार को देखकर सब हैरान रह गये। इसके बाद पूरा गांव माता को मानने लगा।
क्या है शीतला सप्तमी व्रत व पूजा की विधि
इस दिन श्वेत पाषाण रूपी माता शीतला की पूजा की जाती है। उत्तर भारत में तो विशेष रूप से मां भगवती शीतला की पूजा की जाती है।इसके अलावा इस दिन व्रती को प्रात:काल उठकर शीतल जल से स्नान कर स्वच्छ होना चाहिये। तत्पश्चात व्रत का संकल्प लेकर विधि-विधान से मां शीतला की पूजा करनी चाहिये। व पहले दिन बने हुए यानि बासी भोजन का भोग लगाना चाहिये। साथ ही शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत की कथा भी सुनी जाती है। रात्रि में माता का जागरण भी किया जाये तो बहुत अच्छा रहता है।
2020 में कब है शीतला सप्तमी का व्रत
वैसे तो शीतला सप्तमी या अष्टमी का व्रत केवल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता है यानि होली के बाद जो भी सप्तमी या अष्टमी आती है उस तिथि को लेकिन कुछ पुराण ग्रंथों में चैत्र बैसाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ आदि चतुर्मासी शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत रखने का विधान भी बताया गया है। 2020 में शीतला सप्तमी का उपवास 15 मार्च को रखा जायेगा। शीतला अष्टमी तिथि 16 मार्च को है। यदि आप शीतला सप्तमी का उपवास रखते हैं तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि परिवार का कोई भी सदस्य गलती से भी गरम भोजन न ग्रहण करें। मान्यता है कि ऐसा करने से माता कुपित हो जाती हैं।शीतला सप्तमी 2020 - 15 मार्च 2020शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त - 06:34 ए एम से 06:26 पी एमसप्तमी तिथि आरंभ - 04:25 बजे (15 मार्च 2020)सप्तमी तिथि समाप्त - 03:19 बजे (16 मार्च 2020)
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