नई दिल्ली। आज कश्मीर में जितनी भी समस्याएं हैं, उनके पीछे एक व्यक्ति का हाथ है। ऐसा माना जाता है नेशनल कांफ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्लाह कश्मीर की परेशानियों का मुख्य कारण रहे हैं। शेख अब्दुल्लाह जम्मू कश्मीर के नेता फारुक अब्दुल्लाह के पिता और उमर अब्दुल्लाह के दादा थे। शेख अब्दुल्लाह का जन्म 5 दिसंबर 1905 को हुआ था और आज के दिन यानी 8 सितंबर 1982 को उनका निधन हो गया था।
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शेख अब्दुल्लाह को शेरे—कश्मीर कहा जाता है। वे तीन बार जम्मू—कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे। कहा जाता है कि 1947 में जब देश आजाद हुआ, तब कश्मीर को लेकर बहुत असमंजस था। यह सुनिश्चित नहीं हो पा रहा था कि कश्मीर को भारत का अंग बनाया जाए या फिर पाकिस्तान में मिला दिया जाए। कहा जाता है कि उस समय कश्मीर में राजा हरिसिंह और शेख अब्दुल्लाह का दबदबा था और दोनों ही कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने के खिलाफ थे। ऐसा भी माना जाता है कि शेख अब्दुल्लाह की वजह से ही कश्मीर भारत में मिल पाया, लेकिन धीरे—धीरे अब्दुल्लाह का मन बदलने लगा। यहां सवाल यह है कि जो भारत का पूर्ण पक्षधर था, ऐसा क्या हुआ कि वह अलगाववादी सोच रखने लगा? ऐसा क्या हुआ कि 1953 में उनके सबसे अच्छे दोस्त नेहरू ने ही उन्हें गिरफ्तार करवा दिया?
कश्मीर में बजता था डंका
शेख अब्दुल्लाह एक पढ़े—लिखे उदारवादी व्यक्ति थे। शेख अब्दुल्लाह के पूर्वज हिंदू थे और इसका उल्लेख उनकी जीवनी आतिश-ए-चिनार में किया गया था। एक समय था, जब कश्मीर में शेख जो बात कह दें, वही मानी जाती थी। वहीं वे नेहरू के अच्छे दोस्त भी थे। दोनों के बीच अच्छी पटती थी। ऐसा कहा जाता है कि 1950 के समय शेख जो कह दें, कश्मीर में वही होता था।
महात्वाकांक्षा ले डूबा कश्मीर को
शेख अब्दुल्लाह कश्मीर के विशेष दर्जे के पक्षधर थे। वे धारा 370 के समर्थक थे और कश्मीर को विशेष दर्जा देना चाहते थे। उनकी महात्वाकांक्षा इतनी बढ़ गई कि वे कश्मीर को लेकर अलगाववादी विचार रखने लगे। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि शेख की वही महात्वाकांक्षा आज कश्मीर की समस्याओं के लिए जिम्मेदार है।
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