इस्लामाबाद: पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत में हाल ही में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच हुई हिंसा में 80 से अधिक लोग मारे गए हैं। यह हिंसा कुर्रम जिले के पारचिनार इलाके में भड़की, जहां दोनों समुदायों के बीच लंबे समय से तनाव और संघर्ष चल रहा है। ताजा हिंसा ने इलाके में व्यापक आर्थिक और सामाजिक नुकसान किया है। बड़ी संख्या में परिवार अपने घर छोड़कर जाने को मजबूर हुए हैं।
पाकिस्तान में सुन्नी मुसलमानों के हाथों हर दिन लगभग 30-35 शिया मारे जा रहे हैं। मीडिया इस जातीय हिंसा को “Sectarian clash” बताकर इस्लाम की असलियत पर पर्दा डालने में व्यस्त है। भारत में #shiamuslim का नेतृत्व इस पर कभी कुछ नहीं बोलता। #ShiaGenocide pic.twitter.com/a5U5vED8bp
— Chandra Prakash (@CPism) November 24, 2024
21 नवंबर 2024 को पारचिनार में एक शिया काफिले पर हमला हुआ। ये काफिले पेशावर और पारचिनार के बीच सफर कर रहे थे। इनमें शिया समुदाय के लोग और सुरक्षाबल शामिल थे। जब ये काफिले कुर्रम के निचले इलाके में पहुंचे, तो पास की पहाड़ियों से भारी गोलीबारी और रॉकेट दागे गए। इस हमले में 43 लोग मारे गए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। इस घटना के बाद इलाके में हिंसा का दौर शुरू हो गया। शिया समुदाय ने हमले के विरोध में सुन्नी कबीलों पर जवाबी कार्रवाई शुरू की। 22 नवंबर को शिया लड़ाकों ने बगान बाजार और आसपास के इलाकों में हमला किया, जिसमें लगभग 200 दुकानें जला दी गईं। कई सुन्नी परिवारों को निशाना बनाया गया और कुछ को अगवा कर लिया गया। इस हिंसा में अब तक 80 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, जबकि कई घायल हुए हैं।
शिया और सुन्नी समुदायों के बीच यह संघर्ष नया नहीं है। पारचिनार पाकिस्तान के उन कुछ इलाकों में से है, जहां शिया आबादी सुन्नी के बराबर या अधिक है। यहाँ के ऊपरी हिस्सों में शिया बहुसंख्यक हैं, जबकि निचले इलाकों में सुन्नी समुदाय का वर्चस्व है। दोनों समुदायों के बीच विवाद की जड़ जमीन के अधिकार और कबीलाई दुश्मनी मानी जाती है। यह विवाद 1930 के दशक में लखनऊ में हुए शिया-सुन्नी दंगों से भी जुड़ा हुआ बताया जाता है। उस समय पारचिनार के शिया लोग लखनऊ में शिया मौलानाओं के समर्थन में गए थे, जिससे यहाँ सुन्नी समुदाय के बीच तनाव बढ़ गया।
कुर्रम जिले की जमीन पर लंबे समय से विवाद है। यह जमीन खेती के लिए उपयोगी है, और कबीलाई इलाका होने के कारण आय के अन्य साधन यहाँ बहुत कम हैं। इन जमीनों पर मालिकाना हक के स्पष्ट दस्तावेज नहीं हैं, जिससे दोनों समुदायों के बीच लड़ाई होती रहती है। इसके अलावा, यह इलाका अफगानिस्तान की सीमा से सटा हुआ है, जो इसे और अधिक संवेदनशील बनाता है। सुन्नी आतंकी समूह जैसे तालिबान और अल-कायदा भी इस इलाके में सक्रिय रहे हैं। शिया समुदाय का आरोप है कि सुन्नी लड़ाके बाहरी आतंकियों की मदद से उन पर हमला करते हैं।
यह लड़ाई कई बार हिंसा के बड़े दौर में बदल चुकी है। 2007 से 2011 तक, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 1600 से अधिक लोग मारे गए और 5000 से ज्यादा घायल हुए। हाल ही में अक्टूबर और सितंबर में भी यहाँ हिंसा हुई थी, जिसमें दर्जनों लोगों की मौत हुई। 24 नवंबर को, स्थानीय प्रशासन की मध्यस्थता से शिया और सुन्नी समुदायों के बीच अस्थायी समझौता हुआ। दोनों पक्षों ने 7 दिनों के लिए हिंसा रोकने और बंधकों को छोड़ने पर सहमति दी। सरकार ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं और उम्मीद जताई है कि यह समझौता लंबे समय तक शांति बनाए रखने में मदद करेगा। हालांकि, यह देखना बाकी है कि यह समझौता कितने समय तक टिकता है और क्या यह इलाके में स्थायी शांति लाने में सफल होगा।
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