भोपाल: मध्यप्रदेश की सत्ता से 15 साल बाद बाहर हुई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तेवर धीरे-धीरे तीखे हो चले हैं. अब भाजपा विपक्षी दल की भूमिका में नजर आने लगी है और उसकी तरफ से एक के बाद एक आंदोलन चलाकर सूबे की कमलनाथ सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है. यह बात अलग है कि अब तक एक भी आंदोलन जनता के आंदोलन में तब्दील नहीं हो पाया है.
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था, कांग्रेस को बहुमत न मिलने पर सरकार के भविष्य को लेकर शुरू से ही सवाल उठ रहे थे, मगर समय गुजरने के साथ सरकार खुद को मजबूत करने में लग गई. भाजपा सत्ता से बाहर होने के बाद सीधे तौर पर सड़कों पर उतरने से गुरेज करती रही, किन्तु लोकसभा चुनाव में राज्य में भाजपा के खाते में आई प्रचंड जीत ने पार्टी को एक बार वापस उत्साहित कर दिया है.
लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने राज्य की कमलनाथ सरकार पर किसानों की कर्जमाफी के वादे को पूरा न करने का आरोप लगाए. उसके बाद बिजली कटौती को मसला बनाया गया. पार्टी की तरफ से पहला राज्यव्यापी आंदोलन चलाया गया. भाजपा नेता हाथों में लालटेन लेकर सड़कों पर निकले. प्रदेश में अब भी बिजली कटौती बड़ा मुद्दा बना हुआ है. भाजपा बिजली कटौती के मुद्दे को भुनाने में लगी है, मगर मौसम में आए परिवर्तन से पार्टी को लग रहा है कि इस आंदोलन को जनता का अधिक साथ नहीं मिलेगा तो उसने भोपाल समेत अन्य स्थानों पर मासूमों के साथ हुई ज्यादती को मुद्दा बनाया. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 'बेटी बचाओ अभियान' आरंभ किया, जिसे वे गैर सियासी आंदोलन बता रहे हैं.
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