मुंबई: शिवसेना के मुखपत्र सामना में देश की वित्तीय स्थिति और नौकरी को लेकर चिंता जताई हैं. सामना में लिखा हैं कि, दिल्ली में नई सरकार के काम करने का दृश्य तैयार हो गया है. उस दृश्य पर चुनौती के काले धब्बे साफ़ नज़र आने लगे हैं. देश की वित्तीय स्थिति स्पष्ट रूप से बिगड़ी हुई दिखाई दे रही है. आसमान फटा हुआ है इसलिए सिलाई भी कहां करें ऐसी स्थिति हो गई है.
सामना में लिखा है कि मोदी की सरकार आ रही है इस सुगबुगाहट के साथ ही सट्टा बाजार और शेयर बाजार मचल उठा, किन्तु ‘जीडीपी’ गिर पड़ा और बेरोजगारी का स्तर बढ़ गया ये कोई अच्छे संकेत नहीं हैं. शिवसेना ने लिखा कि, 'बेरोजगारी का खतरा ऐसे ही बढ़ता रहा तो क्या करना होगा, इस पर केवल चर्चा करके और विज्ञापनबाजी करके कोई फायदा नहीं होगा, कृति करनी पड़ेगी. देश में बेरोजगारी की ज्वाला चरम पर है.'
सामना में लिखा है कि,' ‘नेशनल सेंपल सर्वे’ के आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसद पहुंच गई. गत 45 सालों का यह सर्वोच्च आंकड़ा है. केंद्रीय श्रमिक मंत्रालय ने भी इस आंकड़े पर मुहर लगा दी है. जबकि ये आंकड़े सरकार के ही हैं, हमारे नहीं. सरकार का ही कहना है कि बेरोजगारी बढ़ रही है और यह कोई हमारा पाप नहीं है. बेरोजगारी की दिक्कत कोई पिछले 5 वर्षों में भाजपा ने निर्मित नहीं की है, ऐसा नितिन गडकरी ने कहा है. हम उनके विचार से सहमत हैं लेकिन हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा था और उस हिसाब से गत 5 वर्षों में कम-से-कम 10 करोड़ रोजगार का लक्ष्य पार हो जाना चाहिए था, जो होता नज़र नहीं आ रहा है और उसकी जिम्मेदारी नेहरू-गांधी पर नहीं डाली जा सकती है.'
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