राजभवन में भूतों का बसेरा, शांतियज्ञ करवाना जरूरी: शिवसेना

राजभवन में भूतों का बसेरा, शांतियज्ञ करवाना जरूरी: शिवसेना
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मुंबई: महाराष्ट्र के मंत्रिमंडल ने विधानपरिषद में 12 सदस्यों को मनोनीत करने करने की सिफारिश की है। जी दरअसल इस सिफारिश को छह महीने बीत चुके हैं लेकिन अब तक राज्यपाल ने कोई निर्णय नहीं लिया। ऐसे में जब आरटीआई के तहत राज्यपाल सचिवालय से जानकारी मांगी गई तो राजभवन से यह जवाब मिला है कि ऐसी कोई सिफारिश की गई नामों की सूची उपलब्ध ही नहीं है।यह सब होने के बाद अब मुंबई हाईकोर्ट ने राज्यपाल से सवाल पूछा है। जी दरअसल शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में राज्यपाल से सवालों की झड़ियां लगा दी गई हैं।

सबसे पहले शिवसेना ने राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी, केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश भाजपा पर कटाक्ष करते हुए लिखा है कि, ''क्या महाराष्ट्र का राजभवन गतिशील प्रशासन की व्याख्या में नहीं आता है? वर्तमान समय में प। बंगाल और महाराष्ट्र के राज्यपाल कुछ ज्यादा ही चर्चा में रहते हैं। प। बंगाल के राज्यपाल जगदीश धनकड़ कुछ ज्यादा ही तेज तो महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की गति कुछ मामलों में धीमी पड़ गई है। यह आलोचना न होकर वास्तविकता है। भारतीय जनता पार्टी के महामंडलेश्वरों को इस वास्तविकता को समझ लेना चाहिए।''

वहीं आगे ‘सामना’ में लिखा गया है कि, ''महाराष्ट्र का मंत्रिमंडल बहुमत से निर्णय लेकर एक फाइल राज्यपाल के पास भेजता है व राज्यपाल 6 महीने उस पर निर्णय नहीं लेते हैं। इसे मंद गति कहा जाए या कुछ और? फाइल की उम्र 6 महीने की है इसलिए कल मुंबई तट से टकराए चक्रवाती तूफान ताउते की मार उस फाइल पर पड़ी। तूफानी लहरें राजभवन में घुसीं और फाइल बह गई, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है। अब तो फाइल प्रकरण का रहस्य और भी गहराता जा रहा है। क्योंकि 12 लोगों के प्रस्तावित नामों की ‘सूची’ वाली यह फाइल राज्यपाल सचिवालय से अदृश्य होने की जानकारी सामने आई है।''

वहीं सामना में आगे लिखा गया है कि , ''यह तो सीधे-सीधे भूतोंवाली हरकत ही है। महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा (अंधविश्वास) निर्मूलन कानून है। उसमें भूत-प्रेत, जादू-टोना के लिए स्थान नहीं है। फिर भी मुख्यमंत्री द्वारा भेजी गई एक महत्वपूर्ण फाइल 6 महीने नहीं मिलती है। अब वह लापता हो गई। इसे कैसा संकेत माना जाए? अब तो मुंबई उच्च न्यायालय ने राज्यपाल से पूछा है, ‘साहेब, उस फाइल का क्या हुआ?’ इसलिए फाइल किसी भूत ने चुरा लिया, ऐसा खुलासा राज्यपाल को ही करना होगा।''

इसके अलावा सामना में यह भी लिखा गया है कि, ''12 मनोनीत सदस्यों की सूची राज्यपाल ने समय पर मंजूर कर ली होती तो इस कोरोना संकट काल में वो सदस्य अधिक समर्पित भाव से काम कर सकते थे, परंतु इन 12 जगहों को 6 महीने खाली रखकर राज्यपाल ने गैरकानूनी काम किया है। विधायकों की नियुक्ति के मामले में विशिष्ट कालावधि में ही निर्णय लिया जाए, ऐसा कानून में दर्ज नहीं है। इसलिए राज्यपाल इस पर निर्णय नहीं ले रहे हैं, ऐसा अर्थ लगाना गलत है, ऐसा वकीली प्वाइंट भाजपाई नेता आशीष शेलार ने ढूंढ़ा है। परंतु उस ‘प्वाइंट ऑफ ऑर्डर’ का कोई भी अर्थ नहीं है। बल्कि इस लीपापोती से राज्यपाल की नीयत की ही कलई खुल जाती है। निर्णय किस व कितनी कालावधि में लिया जाए, ऐसा कानून में नहीं कहा गया है। यह बकवास व भागने जैसा है। क्योंकि इसका अर्थ ऐसा भी नहीं होता है कि 6 महीने, साल भर नियुक्ति ही न करो। नियुक्ति न करना यह राज्य के विधानमंडल का अपमान है।''

सामना लिखने के बाद शिवसेना सांसद और प्रवक्ता संजय राउत ने पत्रकारों से कहा कि राज्यपाल द्वारा 12 सदस्यों की फाइल मंजूर न करना, इसके पीछे राजनीति है व फाइल दबाकर रखो, ऐसा ऊपरी आदेश है। महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार को हम गिरा देंगे, इस झूठे विश्वास पर विपक्ष जी रहा है। परंतु यह विश्वास अर्थात ‘ऑक्सीजन’ न होकर कार्बन डाई ऑक्साइड है। जहरीली हवा है। इस उठा-पटक में दम घुटने से तड़पोगे, इस खतरे की चेतावनी हम दे रहे हैं।

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