मुंबई: शिवसेना ने मुखपत्र सामना में मंदिरों को खोलने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा किए जा रहे घंटानाद आंदोलन पर हमला बोला है. सामना में लिखा है कि देवेंद्र फडणवीस कहते हैं कि धार्मिक स्थानों को खोलने के बाद शारीरिक दूरी रखना लोगों को आता है, किन्तु भाजपा की तरफ से जो घंटानाद आंदोलन हुआ, उसकी तस्वीरें देखने के बाद समझ में आया कि ‘डिस्टेंसिंग’ की धज्जियां कैसे उड़ी हैं.
इसलिए मंदिरों को खोलने के मामले में विरोधियों को कुछ बोलने के पहले महाराष्ट्र की स्थिति को समझना जरुरी है. जिस ‘मन की शांति’ का उद्घोष सूबे के विरोधी दल नेता कर रहे हैं, उस मन की शांति का सही मायनों में मतलब समझ लेना चाहिए. मन की शांति का रास्ता त्याग से होकर गुजरता है. मन की शांति महात्मा गौतम बुद्ध, वर्धमान महावीर और स्वामी विवेकानंद की तरह होती है. गौतम बुद्ध ने मन की शांति के लिए राजपाठ का त्याग तो किया ही, साथ ही कठोर तपस्या भी की. आज के राजनेता ऐसा त्याग करेंगे क्या?
शिवसेन ने लिखा कि दो वक़्त का चूल्हा जलाना ही लाखों लोगों के लिए मन की शांति होती है और कई लोगों को सियासी कुर्सी की प्राप्ति ही मन की शांति का मार्ग मालूम पड़ती है. स्वतंत्रता सेनानी मदनलाल धींगरा ने फांसी पर जाने के पहले मन की शांति प्राप्त की थी. वीर बाजीप्रभु देशपांडे को पांच तोपों की गरज सुनने के बाद ही मन की शांति मिली थी. मन की शांति राष्ट्रीय, धार्मिक और सामाजिक कामों में भी होती है. मंदिरों के ताले खोलने चाहिए किन्तु राजनीतिक मन की शांति के लिए नहीं. पहले लोगों को जीवित रखो, फिर आगे देखेंगे!
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