अपने कई बीमारी के बारे में सुना होगा. ऐसे ही आज हम आपको बताने जा रहे हैं 'डिकॉय इफेक्ट' के बारे में जिसमें लोग अधिक खर्च करते हैं. बता दें, कॉफी खरीदते समय आपने ध्यान दिया होगा कि तीन साइज के कप के विकल्प होते हैं. ऐसे में अगर आपने सबसे बड़ा और महंगा विकल्प चुना है तो डिकॉय इफेक्ट के शिकार हुए हैं. इसमें जानबूझकर एक अतिरिक्त और कम आकर्षक विकल्प पेश किया जाता है जिससे आप महंगे विकल्प को चुनकर अधिक भुगतान के लिए तैयार हो जाते हैं. जानते हैं इसके बारे में.
दरअसल, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक लिंडा चांग कहती हैं, "यदि आप विकल्पों को एक निश्चित तरीके से तैयार करें तो आप लोगों को महंगे उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित कर सकते हैं."
डिकॉय इफेक्ट की जांच सबसे पहले उपभोक्ता विकल्पों को प्रभावित करने वाली एक मार्केटिंग स्ट्रैटजी के रूप में की गई थी. लेकिन नये रिसर्च से पता चलता है कि इसका प्रभाव भर्ती, स्वास्थ्य सेवाओं और यहां तक कि राजनीति पर भी पड़ता है. यह दिखाता है कि हमारे निर्णय उन संदर्भों से आसानी से प्रभावित किए जा सकते हैं, जिन संदर्भों में तथ्य पेश किए जाते हैं.
डिकॉय इफेक्ट के बारे में जानने के बाद आप इसके शिकार कम होंगे. इससे आप किसी को प्रोत्साहित करने के तरीके भी ढूंढ़ सकते हैं.
मनोवैज्ञानिक अभी तक डिकॉय इफेक्ट की सटीक वजह नहीं बता पाए हैं. एक विचार यह है कि डिकॉय विकल्प के साथ तुलना करने पर हमें महंगे विकल्प भी उचित लगने लगते हैं.
व्यवहार का यह पैटर्न बीयर से लेकर टीवी और गाड़ियां खरीदने तक में भी देखा गया है. एक अनाकर्षक तीसरा विकल्प अन्य दो संभावनाओं के बीच वरीयता को बदल देता है.
सकारात्मक पहलू
डिकॉय इफेक्ट के सकारात्मक पहलू भी हैं. ब्रिटेन के वैज्ञानिक इसका इस्तेमाल लोगों को स्वस्थ जीवन विकल्पों को अपनाने के लिए प्रेरित करने में करने की सोच रहे हैं.
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में व्यवहार विज्ञान एवं स्वास्थ्य के रीडर क्रिश्चियन वोन वैग्नर ने हाल ही में कोलोरेक्टल कैंसर की एक अहम- मगर अप्रिय- जांच से गुजरने के प्रति लोगों के इरादों को परखा.
उन्होंने पाया कि जांच कराने या नहीं कराने का विकल्प होने पर कई लोगों ने जांच नहीं कराने का विकल्प चुना.
जब लोगों को एक कम सुविधाजनक अस्पताल में लंबे इंतजार के बाद जांच कराने का तीसरा विकल्प (डिकॉय) दिया गया तो वे पहले अस्पताल में जांच के लिए तैयार होने लगे.