नई दिल्ली: भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री अपनी ढाका यात्रा के दौरान भारत-बांग्लादेश संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है, और यह सवाल उठता है कि क्या भारत को बांग्लादेश के इस्लामी कट्टरपंथ से प्रभावित समाज में हस्तक्षेप करना चाहिए ?
भारत का विभाजन भी तो इस आधार पर हुआ था कि मुसलमान हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते थे। अब बांग्लादेश में भी इस्लामी कट्टरपंथी ताकतें हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार कर रही हैं। 20वीं सदी की शुरुआत में पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 33 प्रतिशत थी, जो विभाजन के बाद हुई हिंसा और नरसंहार के कारण घटकर 22 प्रतिशत हो गई और अब यह संख्या 8 प्रतिशत से भी कम रह गई है। शेख हसीना सरकार के दौरान भी यह गिरावट जारी रही। यह गिरावट सिर्फ राजनीतिक अस्थिरता का परिणाम नहीं है, बल्कि इस्लामी समाज की गैर-मुसलमानों के प्रति नफरत का एक स्पष्ट उदाहरण है। तो क्या अब भारत को भी बांग्लादेश को दो टुकड़ों में तोड़ने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए, जहाँ एक तरफ इस्लामी कट्टरपंथ अपनी मजहबी धर्मान्धता के साथ रहे, वहीं दूसरी तरफ अल्पसंख्यक शांति से जी सकें।
इसमें कोई दो राय नहीं कि, दुनिया भर में जहां भी मुस्लिम आबादी बढ़ी है, वहां अन्य समुदायों के साथ हिंसा और नरसंहार हुए हैं। पारसी कैसे ख़त्म हुए, उनका देश पर्शिया, ईरान कैसे बना? ईसाईयों का प्रसीद्ध देश लेबनान, कैसे अपनी पहचान खो बैठा और आज इस्लामी हिज्बुल्ला आतंकियों का गढ़ बन गया है? सीरिया कभी ईसाई बहुल देश था, आज वो इस्लामिक स्टेट और अल शाम के आतंकियों के कब्जे में है..! इजिप्ट की पिरामिड और ममी वाली सभ्यता कैसे नष्ट हुई? इसमे इस्लामी आक्रमण का बड़ा योगदान है..! आज भी, म्यांमार में मुसलमान, बौद्धों से लड़ रहे हैं, यूरोप में ईसाईयों से और इजराइल में यहूदी समुदाय से संघर्ष जारी है। वहीं, भारत-पाकिस्तान-अफगानिस्तान जैसे देशों में हिन्दुओं-सिखों पर मुसलमानों के अत्याचार की खबरें लगातार आती रहती हैं। कहीं उनकी बहन-बेटियों को उठा लिया जाता है, तो कहीं उनकी हत्याएं कर दी जाती हैं, जबरन इस्लाम कबुलवाना तो आम बात हो चुकी है, जिस पर अब कोई ध्यान भी नहीं देता। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए, तो खाड़ी देशों को छोड़कर दूसरे किसी देश में मुस्लिम समुदाय और अन्य समुदाय शांति से नहीं रह पा रहे है। खाड़ी देशों में भी इसलिए क्योंकि, वहां पैसों के कारण अन्य समुदाय के लोग नौकरी करते हैं और उन देशों की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देते हैं, इसलिए वहां इतना कट्टरपंथ नहीं हैं।
इसके अलावा जहां सिर्फ मुसलमान रहते हैं, वहां शिया-सुन्नी विवाद या अन्य इस्लामी विचारधारा के नाम पर संघर्ष होते हैं। ऐसे में, बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों को शांति से जीने के लिए इस्लामी कट्टरपंथ से दूर रहने की आवश्यकता महसूस होती है। भारत को बांग्लादेश के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों और ईसाइयों के लिए एक सुरक्षित स्थान सुनिश्चित करने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी इतनी बिखरी हुई है कि वे कहीं भी प्रभावशाली अल्पसंख्यक नहीं हैं। केवल कुछ ही क्षेत्रों में, जैसे रंगपुर, खुलना और सिलहट, उनकी संख्या 10 प्रतिशत से अधिक है। इन क्षेत्रों में हिंदुओं को संगठित और सुरक्षित करने के लिए भारत को एक योजना बनानी होगी, जिसमें हिंदुओं को भारत की सीमा से सटे क्षेत्रों में पुनर्वासित किया जा सकता है, जहां उन्हें सैन्य सुरक्षा प्रदान की जा सके।
यह सवाल अब भारत सरकार से पूछा जा रहा है कि क्या वह बांग्लादेश के इस्लामी कट्टरपंथ से प्रभावित समाज में अल्पसंख्यकों के लिए ठोस कदम उठाएगी। क्या बांग्लादेश के हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए एक अलग भूभाग बनाने की जरूरत है, ताकि वे इस्लामी कट्टरता से सुरक्षित रह सकें? भारत को इस गंभीर समस्या का समाधान खोजना होगा, ताकि बांग्लादेश के 13.1 मिलियन हिंदुओं को इस्लामी कट्टरता से बचाया जा सके और वे शांति से अपनी जिंदगी जी सकें।