सावन माह में करना चाहिए श्री गणेश के इन मन्त्रों का जाप

सावन माह में करना चाहिए श्री गणेश के इन मन्त्रों का जाप
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सावन का महीना सबसे पवन महीना कहा जाता है. इस महीने में शिव का पूजन करने से बड़े फायदे होते हैं. जी दरअसल इस माह में जो शिव का पूजन करता है उसके सभी कष्ट कट जाते हैं. आप जानते ही होंगे श्रावण भगवान भोलेनाथ का माह माना जाता है लेकिन पुराणों में लिखा हुआ है कि इसी माह श्री गणेश, माता पार्वती और श्री कृष्ण की आराधना भी शुभ है. जी हाँ, इसी के साथ कहते हैं श्री गणेश के मंत्र श्रावण मास में विशेष फलदायी हैं. अब आज हम आपको उन्ही मन्त्रों के बारे में बताने जा आरहे हैं. आइए जानते हैं.


प्रस्तुत हैं मंत्र -
1. गजाननं भूतगणदिसेवितं कपिस्थ जम्बू फल चारुन भक्षणम्.
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्..

2. वर्णानामार्थ संधानम् रसानाम् छन्दसामपि.
मंगलानाम् महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ.
निर्विघ्नं कुरुमेदेव सर्व कार्येषु सर्वदा.

3. रक्ष-रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक.
भक्तानामभयं कर्त्ता त्राताभव भवार्णवात्..

4. द्वैमातुर कृपासिन्धो! षाष्मातुराग्रज प्रभो.
वरद त्वं वर देहि वांछितं वांत्रिछतार्थद..
अनेन सफलार्ध्येण फलदांऽस्तु सदामम..

5. विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,
लम्बोदराय सकलाय जगद्विताय
नागाननाय श्रुतियज्ञ विभूषिताय
गौरी सुताय नमस्तुभ्यं सततं मोदक प्रिय.
लम्बोदरं नमस्तुभ्यं सततं मोदक प्रिय.
निर्विघ्नं कुरुमेदेव, सर्व कार्येषु सर्वदा.

6. नारद उवाच
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी पुत्रं विनायकम्.
भक्तावासं सस्मरेन्नित्रुमायु: कामार्थ सिद्धये..
प्रथमं वक्रतुण्डं च एक दन्तं द्वितीयकम.
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्..
लम्बोदरं पंचमं च षष्टं विकटमेव च.
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टकम्..
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्.
एकादशं गणपति द्वादशं तु गजाननम्..
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर:.
न च विघ्नभयं तस्य सर्व सिद्धि करं परम्.
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्..
पुत्रार्थी लभते पुत्रान मोक्षार्थी लभते गतिम्..
जपेद् गणपति स्त्रोमं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्.
संवत्सरेण सिद्धिचं लभते नात्र संशय:..
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यं च् लिखित्वाम य: समर्पयेत्.
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:..

7. ॐ सुमुखश्चैक दन्तश्च कपिलो गजकर्णक:.
लम्बोदरश्च विकटो विघ्न नाशो गणाधिप:..
धूम्रकेतु: गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:.
द्वादशैतानि नामानि यपठेच्छशुनयादपि..
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा.
संग्रामे संकटेश्चैव विघ्न: तस्य न जायते..
शुक्लाम्बरधरं देवं शशि वर्णं चतुर्भुजं.
प्रसन्नवदनं ध्याये सर्व विघ्नो प्रशान्तये..
अभीष्टिसतार्थ सिध्यर्थ पूर्जितो य: सुरासुरै:.
सर्वविघ्न हरस्तस्मै गणाधिपतये नम:..
सर्वमंगल मांग्ल्यै शिवे सर्वार्थ साधिके.
शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते..

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