उज्जैन/इंदौर। अब तक आपने ऐसे कई मंदिर देखे होंगे जहां भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी या फिर अपने बड़े भाई बलराम के साथ विराजते हों। मगर आपने ऐसा मंदिर अब तक नहीं देखा हो जहां भगवान श्रीकृष्ण की आराधना मित्रता के प्रतीक के तौर पर की जाती हो। न केवल भगवान श्री कृष्ण की आराधना मित्रता के प्रतीक के तौर पर की जाती है बल्कि 5 हजार वर्ष पुराने वाकये के निशान आज भी यहां कायम हैं। यह जानकर संभवतः आपको आश्चर्य ही होगा कि आज भी धरती पर भगवान श्रीकृष्ण और उनके बचपन के मित्र सुदामा की मित्रता के निशान मौजूद हैं।
जी हां, यह तो आप जानते ही होंगे कि भगवान श्रीकृष्ण विद्याअध्ययन के लिए सांदिपनि ऋषि के आश्रम गए थे। अपने भाई बलराम के साथ उन्होंने मध्यप्रदेश के उज्जैन में ही शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान श्रीकृष्ण अपने आश्रम के मित्रों के साथ लकड़ियां लेने के लिए जंगल जाया करते थे। इसी दौरान भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा के साथ भी रहा करते थे। उज्जैन के समीप महिदपुर तहसिल से करीब 9 किलोमीटर दूर स्थित नारायण धाम उसी समय का प्रतीक है।
जी हां, यहां पर भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता का पूजन किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कहा जाता है कि नारायण धाम में जो पेड़ हरे भरे हैं वे भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा द्वारा एकत्रित की हुई लकड़ियों से ही फले फूले हैं। यहां आने पर आपको बेहद आश्चर्य होता है। कुछ लोगों का यह तक कहना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने जो लकड़ियां एकत्रित की थीं उनमें से कुछ लकड़ी आज भी हरी भरी है।
कहा गया है कि एक दिन आश्रम की गुरू माता ने भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा को लकड़ियां लाने के लिए भेजा। जब दोनों आश्रम लौट रहे थे उसी दौरान तेज बारिश होने लगी और भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा एक पेड़ पर चढ़कर बारिश से बचने का प्रयास करने लगे। इस दौरान उन्होंने पेड़ पर आराम भी किया। जहां भगवान रूके थे उस क्षेत्र में हरे भरे वृक्ष हैं माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण द्वारा एकत्रित की हुई लकड़ियां आज भी उसी अवस्था में है जिस अवस्था में भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें छुआ था। भगवान श्रीकृष्ण के छूते ही सभी लकड़ियां हरी हो गई थीं।
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