श्री कृष्ण ने अपने पूरे जीवन में कई असुरों और राक्षसों का वध किया है धर्म की स्थापना के लिए उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को ख़त्म करने में भी संकोच नहीं किया। एक विशेष कथा कृष्ण और उनके काका ससुर के आस पास घूमती है, जो इस स्थिति के बारे में छिपी सच्चाई को उजागर करती है।
श्री कृष्ण की आठ रानियां थीं जिनमें सत्यभामा भी शामिल थीं, जिनके पिता सत्राजित का एक छोटा भाई था जिसका नाम शतधन्वा था। शतधन्वा ने ऐसा अपराध किया जिससे श्रीकृष्ण क्रोधित हो गए। सत्राजित सत्यभामा से विवाह करने के बाद स्यमंतक मणि श्रीकृष्ण को उपहार स्वरूप देना चाहता था, लेकिन श्रीकृष्ण ने वह मणि सत्यभामा के पिता को दे दी। इससे अन्य यादव सत्राजित से नाराज हो गए और उन्होंने उसे सबक सिखाने के लिए शतधन्वा की मदद ली। जब श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से विवाह किया, तो सत्राजित के कार्यों के कारण यादवों में और अधिक संघर्ष हो गया।
सभी यादवों ने शतधन्वा से मणि चुराने का आग्रह किया, जिसके कारण वह लालच और अपने भाई को नुकसान पहुंचाने के इरादे से मणि लेकर भाग गया। जब श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला तो उन्होंने शतधन्वा को दंड देने की योजना बनाई। कृष्ण के वादे को सुनने के बाद, शतधन्वा ने कई यादव राजाओं से सहायता मांगी, लेकिन उन सभी ने श्री कृष्ण के खिलाफ लड़ने से इनकार कर दिया, जिससे शतधन्वा के पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा। मदद मांगते हुए शतधन्वा अक्रूर जी के पास पहुंचे और उन्हें पूरी कहानी बताई।
अक्रूर जी ने शतधन्वा को उसके गलत कृत्य से अवगत कराया और श्रीकृष्ण की शरण में जाने की सलाह दी। हालाँकि, मृत्यु के भय से शतधन्वा ने भाग जाना ही उचित समझा। छिपने के प्रयास में शतधन्वा मिथिलापुरी की ओर बढ़ा, लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे रास्ते में ही पकड़ लिया। अवसर का लाभ उठाते हुए, श्रीकृष्ण ने शतधन्वा को उसके सभी पाप कर्मों की याद दिलाई और अंततः अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग करके उसे मार डाला।
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