मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जन-जन में बसे हुए हैं. श्री राम किसी संप्रदाय या किसी धर्म के नहीं है, बल्कि वे भारतीयता के परिचायक है. पूरी दुनिया श्री राम को देव रूप में पूजती है. भारत में राम जन्मभूमि का विवाद भी सदियों से सुर्खियों में रहा है. 1528 से इसकी शुरुआत हुई थी और साल 2019 में लंबी न्यायालयीन लड़ाई लड़ने के साथ इसका अंत होता है. आइए जानते हैं इतने वर्षों में आखिर कब क्या-क्या हुआ ?
1528 : तो मंदिर तुड़वाकर बनाई मस्जिद ?
बाबर ने श्री राम की नगरी अयोध्या में मस्जिद का निर्माण कराया और बाबर द्वारा मस्जिद बनवाए जाने के कारण इसे बाबरी मस्जिद कहा गया. 1526 में भारत आने वाले बाबर का साम्राज्य 1528 तक अयोध्या पहुंच चुका था. 1528 के बाद से लेकर 1852 तक क्या हुआ इस बारे में किसी भी तरह की कोई जानकारी मौजूद नहीं है.
1853 : सांप्रादियक दंगे
हिन्दू-मुस्लिम दोनों पक्षों के बीच दंगे हुए. निर्मोही अखाड़े ने यह दावा किया कि बाबर ने मंदिर तुड़वाकर मस्जिद बनवाई थी.
1859 : अंग्रेजी हुकूमत के हाथों बंटा परिसर
1859 में इस मामले में नया मोड़ आया. तब अंग्रेजी हुकूमत ने मस्जिद के समक्ष एक दीवार का निर्माण किया और आदेश दिया कि मस्जिद के अंदर के हिस्से में मुस्लिम इबादत करेंगे जबकि बाहरी हिसे में हिन्दू प्रार्थना आदि करेंगे.
1885: अदालत पहुंचा मामला
1885 में पहली बार यह मामला जिला अदलात में पहुंचा. हिंदू साधु महंत रघुबर दास द्वारा फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनवाने की अनुमति मांगी गई. लेकिन अदालत ने उनकी इस अपील को ठुकरा दिया.
1934: फिर हुए दंगे
1934 में एक बार फिर से दंगे हुए और इस बार दंगे में मस्जिद के चारों तरफ की दीवार और गुंबद क्षतिग्रस्त हो गए. अंग्रेजी हुकूमत ने इसे ठीक कराया था.
1949: हिंदुओं ने कथित तौर पर मूर्ति स्थापित की, सरकार ने ताला लगवाया
भारत की आजादी के बाद पहली बार इस मामले ने 1949 में तूल पकड़ा. इस दौरान हिन्दुओं ने कथित तौर से मस्जिद में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की मूर्ति स्थापित की. इस पर मुस्लिमों की ओर से विरोध के स्वर निकले और मुस्लिमों ने इसे लेकर मस्जिद में नमाज पढ़ना बंद कर दिया. फिर सरकार ने इस स्थल पर ताला लगवा दिया.
1950: अदालत से श्री राम की पूजा की अनुमति
गोपाल सिंह विशारद द्वारा फैजाबाद अदालत में अपील दायर कर श्री राम की पूजा की अनुमति मांगी गई और इस दौरान ही मस्जिद को 'ढांचा' कहकर भी संबोधित किया जाने लगा.
1959-61: दोनों पक्षों की ओर से मुकदमा
निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल के हस्तांतरण के लिए 1959 में मुकदमा दायर कर दिया. वहीं इसके बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से इस मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक जताते हुए मुकदमा दायर किया गया.
1984: रामजन्मभूमि मुक्ति समिति गठित
विश्व हिंदू परिषद द्वारा श्री राम के जन्मस्थल को मुक्त करने और वहां राम मंदिर बनाने की पहल और भी तेज होती दिखीं. गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया. भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने आगे इसकी बागडोर संभल ली.
फरवरी 1986: मिला ताला खोलने का आदेश, मुस्लिमों में पनपा आक्रोश
जिला मजिस्ट्रेट द्वारा हिंदुओं को प्रार्थना करने हेतु विवादित भूमि पर लगे ताले को खोलने का आदेश प्रदान किया गया. हालांकि मुस्लिमों की ओर से विरोध के स्वर उठे और इस दौरान बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति/बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का निर्माण हुआ.
जून 1989: विश्व हिंदू परिषद द्वारा श्री राम मंदिर का शिलान्यास
भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस मामले में विश्व हिंदू परिषद को औपचारिक रूप से समर्थन प्रदान किया गया था. विश्व हिंदू परिषद के नेता
देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला की ओर से मंदिर के दावे का मुकदमा किया था. इसके बाद नवंबर 1989 में मस्जिद से कुछ दूरी पर ही श्री राम मंदिर का शिलान्यास हुआ.
25 सितंबर 1990 : आडवाणी की रथ यात्रा, बिहार में हुए गिरफ्तार
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर के लिए पूर्णतः अपना मन बना चुके थे और वे गुजरात के सोमनाथ से रथ यात्रा लेकर निकले जो कि अयोध्या में समाप्त होनी थी. हालांकि इसी बीच तत्कालीन बिहार के सीएम लालूप्रसाद यादव ने रथयात्रा रोकते हुए आडवाणी को अरेस्ट करा दिया. इस दौरान भारतीय जनता पार्टी द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से अपना समर्थन भी वापस ले लिया गया.
30 अक्टूबर 1990: मुलायम सरकार ने कार सेवकों पर चलवाई गोली
1990 में मस्जिद पर चढ़कर कारसेवकों ने झंडा फहराया था. उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमे 5 कारसेवकों की मृत्यु हो गई थी.
6 दिसंबर 1992: देशभर में दंगे, बाबरी मस्जिद तोड़ी
30-31 अक्टूबर 1992 को धर्मसंसद में कारसेवा की घोषणा हुई. 1992 इस मामले का महत्वपूर्ण साल रहा. यहां से इस मामले ने एक नया मोड़ लेना शुरू किया. इस दौरान हजारों की संख्या में कारसेवक अयोध्या में जमा हुए और बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया. उसके स्थान पर हिन्दुओं ने अस्थाई राम मंदिर बनाया. इस घटना के बाद देशभर में दंगे देखने को मिले थे. जहां लगभग 2000 लोगों की इस दौरान मृत्यु हुई.
16 दिसंबर 1992: लिब्रहान आयोग बना
लिब्रहान आयोग बनाया गया और इसका गठन मस्जिद को ढहाने के मामले को लेकर किया गया था. तब जज एमएस लिब्रहान के नेतृत्व में मस्जिद को ढहाने के मामले की जांच की शुरुआत हुई.
1994: प्रयागराज (इलाहाबाद) हाईकोर्ट में केस शुरू
इलाहाबाद(अब प्रयागराज) हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में इस मामले के केस की शुरुआत हुई.
सितंबर 1997: मस्जिद ढहाने को लेकर 49 लोग दोषी करार दिए गए
मस्जिद ढहाए जाने के करीब 5 साल बाद इस मामले में 49 लोगों को दोषी पाया गया. भाजपा के भी कुछ प्रमुख नेता इसमें शामिल रहे थे.
2001: विश्व हिंदू परिषद द्वारा राम मंदिर बनाने की तारीख हुई तय
नई सदी आई तो देश का हिन्दू इस मामले को जल्द से जल्द खत्म करने के मूड में था. एक ओर बाबरी विध्वंस की बरसी थी, तो वहीं दूसरी ओर इस दौरान विश्व हिंदू परिषद ने कह दिया कि मार्च 2002 में अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया जाएगा. जिससे तनाव और बढ़ गया.
2002 : गोधरा कांड
2002 में गोधरा कांड हुआ था. विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण की शुरुआत की तारीख 15 मार्च 2002 तय की थी. इसके लिए हजारों की संख्या में हिन्दू एकत्रित हुए. फरवरी में अयोध्या से लौट रहे हिंदू कार्यकर्ता जिस रेलगाड़ी में थे, उस पर गोधरा में हमला हुआ और इस दौरान 58 कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी.
15 मार्च 2002 : सरकार को सौंपी शिलाएं, अशोक सिंघल का नेतृत्व
केंद्र सरकार और विश्व हिंदू परिषद के मध्य इस बात पर समझौता हुआ कि विश्व हिंदू परिषद के नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंपेंगे. वहीं रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में करीब 800 कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारी को अखाड़े में शिलाएं सौंप दी.
मार्च-अगस्त 2003: विवादित स्थल के नीचे खुदाई शुरू
हाई कोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा अयोध्या में खुदाई शुरू की गई. जहां यह बात सामने निकलकर आई कि मस्जिद के नीचे मंदिर से मिलते-जुलते अवशेष के प्रमाण देखने को मिले हैं.
अप्रैल-जुलाई 2004: आडवाणी द्वारा अस्थाई मंदिर में श्री राम की पूजा
वरिष्ठ भाजपा नेता आडवाणी द्वारा अयोध्या में अस्थाई राम मंदिर में पूजा-अर्चना की गई और कहा कि मंदिर का निर्माण अवश्य होगा.
जनवरी-जुलाई 2005: अयोध्या में आतंकी हमला, आडवाणी अदालत में
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के मामले में आडवाणी को अदालत जाना पड़ा. जुलाई माह में इस दौरान अयोध्या के राम जन्मभूमि परिसर में आतंकियों ने हमला कर दिया. इसमें एक व्यक्ति की मौत हुई. जबकि पांचों आतंकी भी मारे गए.
30 जून-नवंबर 2009: लिब्रहान आयोग द्वारा पीएम मनमोहन सिंह को सौंपी गई रिपोर्ट
बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जाँच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ था. 2009 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को इसकी रिपोर्ट सौंपी गई.
30 सितंबर 2010: कोर्ट का फैसला, तीन हिस्सों में बंटी विवादित भूमि
इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ द्वारा ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया. अदालत ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने की बात कही. जहां एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया गया.
9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट की इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक
कुछ माह बाद ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी गई.
मार्च-अप्रैल 2017 : आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 21 मार्च को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आपसी सहमति से सदियों से जारी विवाद को सुलझाने के लिए कहा गया.
नवंबर-दिसंबर 2017: रिजवी का बयान, विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण
8 नवंबर 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने भेंट की और इसके बाद उन्होंने एक बहुत बड़ा बयान दिया. रिजवी ने कहा था कि अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनना चाहिए, वहां से दूर हटके मस्जिद का निर्माण किया जाए.
27 सितंबर 2018 : मामले में नया मोड़, 'मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं'
कोर्ट द्वारा इस्माइल फारूकी बनाम भारतीय संघ के 1994 का फैसला, जिसमें यह कहा गया था कि 'मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं' को बड़ी बेंच को भेजने से मनाही. इस पर कहा गया कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर लिया जाएगा और पहले का निर्णय केवल भूमि आधिग्रहण के केस में ही लागू रहेगा.
29 अक्टूबर 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया केस
मामले की जल्द सुनवाई के स्वर उठने लगे थे, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया.
8 मार्च 2019 : मामले पर फैसले आने की घड़ी में कुछ माह शेष थे. सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा गया. जहां पैनल को 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही खत्म करने का आदेश प्रदान किया गया.
अगस्त 2019 : मध्यस्थता पैनल खाली हाथ
1 अगस्त को मध्यस्थता पैनल द्वारा रिपोर्ट पेश की गई. इस पर सर्वोच्च अदालत ने अगले दिन यानी कि 2 अगस्त को कहा कि मध्यस्थता पैनल समाधान निकालने में सफल नहीं रहा. इसके बाद 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई की शुरुआत हुई.
16 अक्टूबर 2019 : सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले में सुनवाई पूरी हो चुकी थी. 9 नवंबर को फैसला सुनाने की तारीख तय.
9 नवंबर 2019 : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, विवादित भूमि पर रामलला का अधिकार
लगभग 5 सदियों की यह लड़ाई आख़िरकार 9 नवंबर 2019 के दिन समाप्त हुई. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि को रामलला का हक माना और मस्जिद के लिए अयोध्या में ही अन्य स्थान पर 5 एकड़ जमीन देने के लिए कहा.
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