इंदौर/ब्यूरो। दर्पण में वास्तविक तस्वीर तभी दिखाई देगी, जब उस पर चढ़ी धूल साफ होगी। श्रीमद भागवत हमारे मन पर चढ़े काम, क्रोध और लोभ, मोह जैसे विकारों की धूल को हटाकर आचरण को निर्मल और पवित्र बनाती है। यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविंद से प्रवाहित हुआ ऐसा निर्झर है, जो युगों-युगों से मानव मात्र का कल्याण बिना किसी भेदभाव के करते आ रहा है। भागवत के प्रत्येक श्लोक और मंत्र में जीवन को चरित्रवान और नैतिक मूल्यों से संस्कारित करने के नुस्खे मौजूद हैं।
यह बात स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती ने स्कीम 78 स्थित चिन्मय शरणम सभागृह में कही। वे श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ के शुभारंभ सत्र में सम्बोधित कर रहे थे। दोपहर में आश्रम परिसर में भागवतजी की कलश यात्रा निकालकर पोथी का पूजन किया गया। इस अवसर पर चिन्मय शरणम के न्यासी रामनिरंजन लोहिया, निर्मलासिंह एवं इंद्रबहादुर मिश्रा, सुधांशु शर्मा, उषा गुप्ता एवं प्रमोद कुमार सूद ने व्यासपीठ का पूजन किया।
स्वामी प्रबुद्धानंदजी ने कहा कि भागवत के प्रत्येक संदेश में जीवन को संस्कारित और वंदनीय बनाने के अनमोल मंत्र छुपे हुए हैं। भागवत का स्वाध्याय मानव से महामनव की मंजिल को प्रशस्त बनाता है। भागवत जैसा विलक्षण ग्रंथ कोई ओर हो ही नहीं सकता, क्योंकि इसका सृजन स्वयं भगवान के श्रीमुख से हुआ है। मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है और इसे केवल पशुओं की तरह जीने के लिए भगवान ने हमें यह शरीर नहीं दिया है। मनुष्य जीवन की धन्यता तभी संभव है, जब हम अपने चरित्र और आचरण को भगवान की हर कसौटी पर खरा उतारने का पुरुषार्थ करें।
मुख्य यजमान सरला गोयल ने बताया कि भागवत ज्ञान यज्ञ से मिलने वाली धनराशि का उपयोग 10 कन्याओं को शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने, किसी भी धर्म या जाति की जरूरतमंद परिवार की एक कन्या का विवाह कराने और शंकर नेत्रालय के सहयोग से जरूरतमंद लोगों की आंखों के आपरेशन कराने जैसे सेवाकार्य किए जाएंगे।
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