बदलती लाइफस्टाइल ने इंसान को बहुत सारी बीमारियां भी गिफ्ट में दी है. आजकल एक नार्मल कॉलेज जाने वाले युवा का भी मेन्टल स्ट्रेस इतना बढ़ गया है जितना स्ट्रेस तो पहले शायद बुजुर्गों में भी नहीं देखा जाता था. खाने पीना का ना तो अब कोई सही वक्त है और ना ही कोई सही तरीका। जब मर्जी आया और जितना मर्जी आया और जो कुछ भी सामने आया वो खा लिया, करियर या बिज़नस से होने वाली टेंशन के कारण पुअर नींद भी नहीं ले पाना आज के दौर में काफी आम हो गया है. इन सब के कारण ही हाई ब्लड प्रेशर जैसी गंभर बीमारियों ने हमें घेर लिया है. बहुत से लोग रोजाना बीपी कण्ट्रोल करने की दवाइयां लेते हैं.
हाल ही में इस पर हुए शोध के मुताबिक हाई ब्लडप्रेशर कंट्रोल करने के लिए दवा देते वक्त डॉक्टर्स को पेशेंट में मेंटल स्टेटृस पर ध्यान देना चाहिए। अगर दवा से उनके ब्रेन पर प्रभाव पड़ रहा है, तो इस पर उन्हें ध्यान देना चाहिए। अपनी रिसर्च में शोधकर्ताओं ने तनाव को लेकर चार हाई ब्लडप्रेशर की दवाओं के बीच तुलना की है। स्कॉटिश हॉस्पिटल्स के दो बड़े सेकंडरी केयर में उन्होंने 525,046 मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन किया। शोधकर्ताओं ने हाई ब्लडप्रेशर के 144,066 मरीजों का चयन किया, जो एंजियोटेंसिन एंटागोनिस्ट्स, बीटा ब्लॉकर, कैल्सियम चैनल ब्लॉकर या थियाजाइड डाइयूरेटिक्स का सेवन कर रहे थे। उन्होंने उनकी तुलना हाई ब्लडप्रेशर के 111,936 मरीजों से की, जो इनमें से कोई दवा नहीं ले रहे थे। हाई ब्लडप्रेशर कंट्रोल करने के लिए 90 दिनों तक दवा देने के बाद इनमें से 299 लोगों को डिप्रेशन की शिकायत हुई।
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