इस वक़्त विश्व भर में पर्यावरण को लेकर जब भी बात होती है तो ग्लोबल वार्मिंग, वायुप्रदूषण का प्रमुख तौर पर जिक्र होता है। जलवायु परिवर्तन के नाम पर भी विश्व के मौसम, महासागरों के बढ़ते जलस्तर, बर्फ का पिघलना जैसे मसले छाए रहते हैं। मगर ये सब पर्यावरण की परेशानियों का सिर्फ कुछ हिस्सा मात्र हैं। इनके अतिरिक्त बहुत ही दिक्कतें गंभीरता लिए हुए हैं जिनमें से सूखा और मरुस्थलीकरण भी बहुत महत्व रखती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र प्रत्येक वर्ष 17 जून को मरुस्थलीकरण और सूखे से लड़ने के लिए विश्व दिवस मनाता है।
क्या है मकसद:-
संयुक्त राष्ट्र का यह दिन हरे पेड़ पौधे, संधारणीय विकास, मानवजाति के स्वास्थ्य के साथ पृथ्वी के भूमि पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए मनाया जाता है। इसका लक्ष्य पृथ्वी पर उन हालातों को समाप्त होने से बचाना है जहां मानव और अन्य जानवर अपना जीवन जी सकें। मगर मरुस्थलीकरण तथा सूखे जैसे हालात ना सिर्फ मानवीय जीवन को मुश्किल बना रहे हैं। बल्कि पर्यावरण को ऐसे हालात की तरफ धकेल रहे हैं जहां से वापसी असंभव है।
क्या है मरुस्थली करण:-
इस दिक्कत को समझने के लिए मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया को समझना बेहद आवश्यक है। जब से मानव ने विकास प्रक्रिया आरम्भ की है उसने भूमि का इस्तेमाल कर उसकी प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समाप्त करना आरम्भ कर दिया है। इससे जमीन पर पेड़ पौधो पनपना तो बंद हुए हैं मिट्टी भी समाप्त होने लगी तथा रेगिस्तान में बदलने लगी है इसी प्रक्रिया को मरूस्थलीकरण बोलते हैं।
इंसान के लिए मुसीबत:-
वैसे तो मरूस्थलीकरण एक प्राकृतिक तथा बेहद धीमी क्रिया है, मगर मानव गतिविधियों इसे बहुत तेज कर दिया है। मिट्टी के निर्माण में लाखों वर्षों का वक़्त लग जाता है जिससे उसमें पौधे पनप सकते हैं। मगर एक बार कोई मिट्टी रेगिस्तानी मिट्टी हो गई तो उसमें पेड़ पौधे नहीं लग सकते। विश्व में इस कारण रेगिस्तान के क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे हैं तथा मिट्टी बंजर हो रही हैं जिससे मनुष्य की दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं।
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