नई दिल्ली: आज जब हम आज़ादी का जश्न मना रहे हैं, तो हमें इसके कुछ घंटों पहले ही हुई विभाजन की विभीषिका को नहीं भूलना चाहिए। 14 अगस्त को गंगा-जमुनी तहजीब और तमाम भाईचारे की धज्जियां उड़ गई थी। कल तक जो भारत में एक साथ रहते थे, और आपस में एक-दूसरे को भाई-भाई कहते थे, वे अचानक भाइयों के ही खून के प्यासे हो गए थे। भारत के विभाजन के दंश ने जिन नागरिकों को अपने ही मुल्क में शरणार्थी बना दिया था, वो गमगीन थे। जिनके अपने मार दिए गए या बिछड़ गए थे, जिनका घर, व्यापार और रोजगार छूट गया, वो दहशत में थे। भविष्य की अनिश्चितताओं से व्याकुल लोगों के लिए 'आजादी' त्रासदी लेकर आई थी। लेकिन, इस बंटवारे में पाकिस्तानियों को तो अपना देश मिल गया था।
एक घर के बंटवारे में जब, पिता, दो बच्चों को अलग करता है, तो वे अपना सामान लेकर ख़ुशी-ख़ुशी अलग हो जाते हैं। तो देश के बंटवारे में ऐसा क्या था, जिसके लिए लाखों लोगों का खून बहाया गया और अनगिनत महिलाओं के जिस्मों को नोचा गया, बच्चे यतीम कर दिए गए और घरौंदे उजाड़ दिए गए। जो मोहम्मद अली जिन्ना की मांग थी, वो उन्हें मिल चुका था, एक अलग देश, जिसके वो सर्वेसर्वा होंगे। वे अपने लोगों को लेकर आराम से नए देश में, नई सोच और नए नियमों के साथ बस सकते थे। लेकिन, जब पाकिस्तान से हिन्दुओं और सिखों की लाशों से भरी एक ट्रेन भारत पहुंची, तो अंदर का मंजर देखकर लोगों के कलेजे फट गए, अंदर स्त्रियों की नग्न लाशें थीं, सिर कटे क्षत-विक्षत शव पड़े थे। इस ट्रेन के अंतिम डिब्बे पर लिखा था कि, 'नेहरू और पटेल को आज़ादी का तोहफा'।
जो काम अंग्रेज 1905 में नहीं कर पाए वो 1947 में कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्युनिस्ट पार्टी ने मिलकर कर दिया।#विभाजन_विभीषिका#विभाजन_विभीषिका_स्मृति_दिवस#PartitionHorrorsRemembranceDay pic.twitter.com/NvE6KJfQJu
— हितानंद Hitanand (@HitanandSharma) August 14, 2023
इसके बाद तो ये सिलसिला सा चल पड़ा, गर्द के गुबार में ढंके, लुटे-पिटे और मौत के डर से भारत की तरफ पलायन करते कभी न ख़त्म होने वाले बड़े-बड़े काफ़िले थे। जो बचा, उसे रास्ते में लूट लिया जा रहा था। लाहौर से ट्रेनें सवारियां लेकर निकलती, लेकिन अमृतसर तक केवल लाशें पहुंचती। ऐसी ट्रेनों की कोई गिनती नहीं थी, जिनपर लिखा होता 'नेहरू-पटेल को हमारी सौगात'। जो लोग कहते हैं कि, विभाजन के दौरान भारत-पाकिस्तान, दोनों तरफ के लोग मारे गए, उनसे एक सवाल पूछना लाज़मी है। क्या वे अपने परिवार की नग्न लाशें देखकर भी पलटवार नहीं करेंगे ? यही पंजाब के सिख बंधुओं ने किया, जिन्होंने अमृतसर स्टेशन को लाशों से पटा हुआ देखा था, अपनी मृत बहन-बेटियों के शरीर अपनी दस्तार से ढंके थे। उनका खून खौल उठा और फिर पलटवार शुरू हुआ, भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेनों में भी लाशें पहुँचने लगीं।
उधर पाकिस्तान के हिस्से आए पंजाब और सिंध में हालात और बदतर थे, यहाँ के लोगों पर क्या गुजरी थी, उस बारे में उत्तरांचल पंजाबी महासभा के प्रदेश अध्यक्ष और पंचनग स्मारक ट्रस्ट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजीव घई बेहद दर्दनाक मंजर बयां करते हैं। वे बताते हैं कि बंटवारे के वक़्त पाकिस्तान में हमारे लोगों पर जो जुल्मो-सितम हुए उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। उस दौर में यह दुनिया की सबसे बड़ी मानव त्रासदी थी। घई उस समय को याद करते हुए बताते हैं कि विभाजन के लिए लाइन खींचने के बाद पाकिस्तान वाले हिस्से में एलान कर दिया गया कि या तो 'कलमा' पढ़ो या फिर पाकिस्तान छोड़कर चले जाओ। जब लोगों ने पाकिस्तान से पलायन करना चाहा, तो वहां नरसंहार शुरू कर दिया गया। सिखों-हिंदुओं को ढूंढ-ढूंढकर मारा जाने लगा। उनकी बहन-बेटियों की आबरू लूटी जाने लगी। अपनी अस्मत बचाने के लिए कई वीर बच्चियों और महिलाओं ने कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी, कुछ ने खुद को आग लगा ली। कुछ माता-पिता ने वहशियों की भीड़ से अपनी बच्चियों को बचाने के लिए, खुद ही उन्हें जहर दे दिया, कुछ ने गला घोंट दिया। कुछ सिख पिताओं ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर, तलवारों से अपनी बेटियों की गर्दनें काट दी।
Never Forget Partition of India. Just a handful of politicians UPROOTED AN ENTIRE GENERATION JUST LIKE THAT. Hindus were forced to leave Everything they owned in what is now Pakistan and trek Miles on foot to reach trains that took them to India. Millions were r@ped, tortured &… pic.twitter.com/OKIxxAfLjQ
— Rosy (@rose_k01) August 14, 2023
घई बताते हैं कि, जहां भारत जाने वाले लोगों की ट्रेनें रुकीं, वहां पानी की टंकियों में जहर मिला दिया गया, जिससे एक ही बार में हजारों की संख्या में लोगों की मौत हो गई। उस दौर में इतनी बड़ी तादाद में लोग मरे थे कि कई को अंतिम संस्कार तक नसीब नहीं हुआ। शवों को गिद्ध नोंच कर खा गए। नन्हें बच्चों को आतताइयों ने भाले की नोक पर टांग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। गुप्तांगों को गोद डाला गया, स्तन काट दिए गए, और ऐसी ही कई वीभत्स और नारकीय यातनाओं को हमारे बुजुर्गों ने सहा।
अगर लोग कहते हैं कि, विभाजन के दौरान हुई हिंसा में दोनों तरफ के लोग मारे गए, तो इसे अर्धसत्य कहा जा सकता है। पूरा सत्य यह है कि, यदि भारतीयों ने ही हमला किया था, तो इतने बड़े भारत में कहीं दूसरी जगह हिंसा क्यों नहीं हुई ? क्या पाकिस्तान में जैसे सिखों-हिन्दुओं के साथ किया गया, क्या उसी तरह भारत में मुस्लिमों को निशाना बनाया गया ? इसका जवाब स्पष्ट शब्दों में 'ना' है। जब, पाकिस्तान से लाशों भरी ट्रेनें, अमृतसर पहुंची थीं, तब जाकर वहां के सिखों ने हथियार उठाए थे, वरना भारत के तो हर इंसान ने अपनी धरती पर चलती आरी को स्वीकार कर लिया था, उन्हें हिंसा करने की आवश्यकता ही क्या था ?
वैसे इस हिंसा का ट्रेलर मोहम्मद अली जिन्ना ने 1946 में ही दिखा दिया था। जब जिन्ना ने अलग देश, पाकिस्तान की मांग करते हुए 'डायरेक्ट एक्शन डे' यानी 'सीधी कार्रवाई' का ऐलान किया था। मुस्लिम लीग द्वारा 'सीधी कार्यवाही' के ऐलान से 16 अगस्त सन् 1946 को कोलकाता में भीषण रक्तपात हुआ था। उस वक़्त बंगाल के मुख्यमंत्री मुस्लिम लीग के हुसैन शहीद सुहरावर्दी थे, जिन्होंने एक सामूहिक रैली का ऐलान किया था। लीग के नेताओं ने रैली में उग्र भाषण दिए जिससे भारी भीड़ भड़क उठी। इसके बाद कलकत्ता में बड़े पैमाने पर हिन्दुओं का रक्तपात हुआ। पहले दिन ही लगभग 4000 लोग मारे गए। इस में हत्या, बलात्कार, जबरन धर्म परिवर्तन और लूटपाट जैसे जघन्य अपराध शामिल थे। कुछ रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि, उस समय मुस्लिम लीग ने मस्जिदों में हथियार बंटवा दिए थे, और फिर योजनाबद्ध तरीके से कत्लेआम को अंजाम दिया गया। इस सारे रक्तपात और सांप्रदायिक तनाव के आगे झुकते हुए अंततः कांग्रेस को हिंसा और अराजकता को दबाने के लिए देश के बंटवारे को स्वीकार करना पड़ा। लेकिन उससे भी क्या ही मिला, 10 लाख लोगों की मौत, अनगिनत स्त्रियों के बलात्कार और 2 करोड़ से अधिक लोगों का विस्थापन, जिनके पास जीवन यापन करने का कोई जरिया नहीं बचा ?
मनी लॉन्डरिंग मामले में TMC सांसद साकेत गोखले के खिलाफ PMLA कोर्ट में आरोप तय - ED
10 साल में पहली बार स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल हुए नेता विपक्ष, लाल किले पहुंचे राहुल गांधी