बांग्लादेशी हिन्दुओं के नरसंहार पर मौन, आतंकी नसरल्लाह की मौत पर मातम, भारत की राजनीति!

बांग्लादेशी हिन्दुओं के नरसंहार पर मौन, आतंकी नसरल्लाह की मौत पर मातम, भारत की राजनीति!
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श्रीनगर: लेबनानी आतंकी संगठन हिजबुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत के बाद केवल मुस्लिम दुनिया में ही नहीं, बल्कि भारत के कश्मीर में भी व्यापक शोक मनाया गया। उनकी मौत की खबर सुनते ही हजारों कश्मीरी श्रीनगर और बडगाम की सड़कों पर इकट्ठा हुए और इजराइल के खिलाफ नारेबाजी की। इस घटना के चलते कश्मीर में चल रहे विधानसभा चुनावों में यह एक प्रमुख मुद्दा बन सकता है। कश्मीर के नेताओं ने भी नसरल्लाह की मौत पर शोक व्यक्त किया। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस अवसर पर अपना चुनाव प्रचार रद्द कर दिया, जिस पर भाजपा नेता कविंदर गुप्ता ने उनकी आलोचना की।

उन्होंने कहा कि, “महबूबा मुफ्ती को नसरल्लाह की मौत पर इतना दुख क्यों है? जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले होते हैं, तब वह चुप रहती हैं।” कविंदर गुप्ता ने आतंकवादी संगठन हिजबुल्लाह की निंदा करते हुए कहा कि नसरल्लाह की मौत दुनिया भर में आतंक फैलाने वाले व्यक्ति का अंत है। उन्होंने महबूबा के शोक को “मगरमच्छ के आंसू” करार दिया और कहा कि लोग इसकी असली मंशा समझते हैं।नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता आगा सैयद रूहुल्लाह मेहंदी ने भी अपनी सभा रद्द की और कहा कि एक बड़ी घटना घटी है, जिसके कारण वह अपना अभियान रोक रहे हैं। इस बीच, यह सवाल उठता है कि भारतीय विपक्ष के नेता हमेशा गाजा-फिलिस्तीन के मुद्दों पर आवाज उठाते रहे हैं। कांग्रेस ने अपनी वर्किंग कमेटी (CWC) में हमास के आतंकवादी हमले की निंदा किए बिना फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया था। राहुल और प्रियंका गांधी के ट्वीट भी इस संदर्भ में देखने को मिले थे। लेकिन, जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार की बात आती है, तो यही लोग चुप्पी साध लेते हैं, क्योंकि वहां मारे जा रहे लोग हिंदू हैं और हमलावर कट्टरपंथी मुस्लिम।

इससे यह सवाल उठता है कि विपक्षी नेता अपने वोट बैंक के खिलाफ बोलने में क्यों हिचकिचाते हैं? जब वे सात समंदर पार मारे जा रहे आतंकियों के लिए आंसू बहाते हैं, जबकि अपने ही पड़ोसी देश में हो रहे अत्याचार पर आंखें मूंद लेते हैं, तो हिंदुओं को किससे उम्मीद रखनी चाहिए? इन नेताओं की पूरी सहानुभूति केवल एक कौम के लिए ही क्यों है ? क्या बाकी धर्म के लोग इंसान नहीं हैं ? यह स्थिति स्पष्ट करती है कि राजनीति में धार्मिक और सामुदायिक हितों को प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे कई सवाल खड़े होते हैं।

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