बेसन और सीमेंट कबसे हलाल-हराम हो गए..? सुप्रीम कोर्ट में उठा 'हलाल सर्टिफिकेट' का मुद्दा

बेसन और सीमेंट कबसे हलाल-हराम हो गए..? सुप्रीम कोर्ट में उठा 'हलाल सर्टिफिकेट' का मुद्दा
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में हलाल प्रमाणन से जुड़े एक मामले ने हलाल उत्पादों की मौजूदा प्रक्रिया और उसकी प्रासंगिकता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के समक्ष कहा कि मांस को हलाल प्रमाणित करना तो समझ में आता है, क्योंकि यह काटने की प्रक्रिया और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है। लेकिन बेसन, आटा, सीमेंट और छड़ जैसी वस्तुओं का हलाल या हराम होना क्या तर्कसंगत है? 

सॉलिसिटर जनरल ने यह मुद्दा उत्तर प्रदेश सरकार की उस अधिसूचना के संदर्भ में उठाया, जिसमें निर्यात के लिए उत्पादित वस्तुओं को छोड़कर राज्य में हलाल प्रमाणित खाद्य उत्पादों के विनिर्माण, भंडारण, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि हलाल प्रमाणन एजेंसियां इन उत्पादों पर प्रमाणन शुल्क वसूलती हैं, जिससे उनकी लाखों करोड़ रुपये की कमाई होती है। उन्होंने सवाल किया, "बेसन हलाल या गैर-हलाल कैसे हो सकता है? और जो लोग हलाल उत्पादों में यकीन नहीं रखते, उन्हें केवल इस वजह से अधिक कीमत क्यों चुकानी चाहिए कि कुछ लोग हलाल सर्टिफिकेट चाहते हैं?" 

याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील ने तर्क दिया कि हलाल प्रमाणन पूरी तरह स्वैच्छिक है और किसी पर इसे खरीदने का दबाव नहीं है। उन्होंने इसे व्यक्तिगत पसंद और जीवनशैली का मामला बताया। सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि हलाल सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया को वही लोग नियंत्रित कर रहे हैं, जो खुद इस प्रमाणन को मांगते हैं। यह देश के बाकी नागरिकों के लिए अनुचित है, जिन्हें अपनी पसंद के बावजूद अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। 

याचिकाकर्ताओं ने यह दावा किया कि उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना अनुचित है और यह व्यापार के अधिकार में बाधा डालती है। दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा कि यह अधिसूचना पूरी तरह से राज्य के अधिकार क्षेत्र में आती है और केंद्र की इसमें कोई भूमिका नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्तों का समय दिया है और मामले की सुनवाई 24 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में तय की गई है। अदालत के इस निर्णय का असर केवल इस मामले तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह हलाल प्रमाणन प्रक्रिया के भविष्य और उसकी प्रासंगिकता पर व्यापक बहस को जन्म दे सकता है। 

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