नई दिल्लीः पिछले लंबे वक्त से देश का रियल एस्टेट उद्योग सुर्खीयों में रहा है। मंदी के तगड़ी मार से यह सेक्टर अब तक नहीं उबर पाया है। नतीजतन कई कंपनियां दिवालिया हो गयी और कई कोर्ट के चक्कर में फंसी हुई है। पूरे देश में लाखों मकान तैयार हैं, मगर इनके खरीदार नहीं है। बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने कंपनियों को कर्ज देना बंद कर दिया है। परिसंपत्तियों की कीमत लगातार घट रही है।
अब इस सेक्टर की स्थिति लगातार सामने लाने वाली एजेंसी नाइट फ्रैंक ने उद्योग संगठन फिक्की और रियल एस्टेट सेक्टर के संगठन नारेडको के साथ जो नया अध्ययन जारी किया है, वह भविष्य में हालात के और बिगड़ने की तरफ संकेत कर रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार मांग में कमी, अनबिके मकानों की बढ़ती संख्या और एनबीएफसी की समस्या का समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। ऑटोमोबाइल और एफएमसीजी क्षेत्र के मंदी के दायरे में फंसने के बाद रियल एस्टेट सेक्टर भी और मुश्किल में फंसता दिख रहा है। इस क्षेत्र में परियोजनाओं की बढ़ती लागत को फिलहाल सबसे बड़ी कठिनाई बताया गया है।
इस कठिनाई के लिए गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की तरफ से वित्त सुविधा के बंद होने को सबसे अहम वजह बताया गया है। एनबीएफसी से कर्ज नहीं मिलने के कारण से कंपनियों को बाहर से महंगा कर्ज लेना पड़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार अभी हालात ऐसे हो गए हैं कि इस सेक्टर में गंभीरता से काम कर रही कंपनियों के लिए भी बैंकों व वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेना आसान नहीं रह गया है। वैसे देश के सभी हिस्सों में निराशा का माहौल है लेकिन उत्तरी भारत में सबसे अधिक मंदी है। सर्वे में भाग लेने वाली कंपनियों ने सबसे अधिक उत्तर भारत के रियल एस्टेट बाजार को लेकर निराशा जताई है। आम्रपाली प्रकरण इसका ताजा उदाहरण है।
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