नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी अदालत ने इजराइल को हथियारों के निर्यात को रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका ठुकरा दी है। ये याचिका प्रशांत भूषण, ज्यां द्रेज़ सहित 11 कांग्रेस-वामपंथ समर्थक वकीलों ने लगाई थी। आज सोमवार को इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत देश की विदेश नीति के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि ऐसी कोई रोक कोर्ट द्वारा नहीं लगाई जा सकती, क्योंकि ऐसे फैसले सरकार आर्थिक और भू-राजनीतिक स्थिति के मद्देनज़र करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इसलिए हम ऐसी याचिका स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि इजरायल एक संप्रभु देश है और भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र में नहीं आ सकता। उल्लेखनीय है कि, इन वकीलों ने अपनी जनहित याचिका में केंद्र को यह निर्देश देने की मांग की थी कि वह इजरायल को हथियार और अन्य सैन्य उपकरण बेचने वाली भारतीय फर्मों के लाइसेंस रद्द कर दे और उन्हें नए लाइसेंस न दे। इस पर चीफ जस्टिस (CJI) डी वाई चंद्रचूड के नेतृत्व में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा है कि भारतीय कंपनियों ने इजराइल को हथियारों और सैन्य उपकरणों के एक्सपोर्ट के लिए कॉन्ट्रैक्ट किए हुए हैं। अब इन कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन के लिए उन पर मुकदमा हो सकता है। इसलिए उन्हें सामग्री की आपूर्ति करने से नहीं रोका जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि, “हम देश की विदेश नीति के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।”
बता दें कि, इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास में बीते एक साल से युद्ध जारी है। गाजा पर इजरायल के युद्ध में हजारों फिलिस्तीनियों की जान जा चुकी है। गाजा की मानें तो, ये आंकड़ा 40 हजार के पार पहुंच चुका है। इससे पहले एक हमले में हमास के आतंकियों ने गाजा की बॉर्डर पार करके इजरायल में हमला कर दिया था और 7 अक्टूबर 2023 को लगभग 1,200 लोगों की हत्या कर दी। इसमें कई महिलाओं के बलात्कार किए गए थे और लगभग 200 लोगों को बंधक बना लिया गया था।
याचिका पर वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि भारत सरकार ने UN समझौते कर दश्तखत किए हैं इसलिए वह अंतरराष्ट्रीय समझौते से बंधी हुई है, जो नरसंहार और युद्ध अपराध में शामिल किसी देश को हथियार आपूर्ति की इजाजत नहीं देता। प्रशांत भूषण ने कहा कि इजरायल स्कूलों और अस्पतालों पर बमबारी करके बेकसूर लोगों की हत्या कर रहा है और ऐसे वक़्त में जब गाजा में युद्ध चल रहा है, भारत द्वारा हथियारों की आपूर्ति नरसंहार संधि का उल्लंघन होगा।
इस पर CJI के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा कि, "आप मान रहे हैं कि इसका इस्तेमाल नरसंहार के लिए किया जा सकता है। आपने एक बेहद नाजुक मुद्दा उठाया है, मगर कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए। सरकार यह मूल्यांकन कर सकती है कि भारतीय कंपनियों पर इसका क्या असर पड़ेगा, क्योंकि वह स्थिति को जानती है।" इसके साथ ही अदालत ने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हो सकती है, तो क्या भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे ?
शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि, "भारत रूस से भारी मात्रा में तेल आयात करता है, क्योंकि देश को ये सस्ता पड़ता है, और इसी में देश का हित है। तो क्या सुप्रीम कोर्ट कह सकता है कि आपको रूस से तेल आयात करना बंद कर देना चाहिए? ये फैसला विदेश नीति से जुड़ा हुआ मामला है और देश की जरूरतों पर निर्भर करता है।" इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषन और अन्य वकीलों को बांग्लादेश या मालदीव के साथ आर्थिक संबंधों की स्थिति से संबंधित अन्य उदाहरण भी दिए। वहीं, केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ताओं ने एक संप्रभु देश की कार्रवाइयों के खिलाफ आक्रामकता और नरसंहार जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना चुना है, जो कूटनीतिक चर्चा में स्वीकार नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि अदालत को ऐसी याचिकाओं पर नोटिस जारी करके याचिका में लगाए गए आरोपों का समर्थन नहीं करना चाहिए। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन 11 वकीलों की जनहित याचिका ख़ारिज कर दी।
हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि इजरायल ने कई अहम मौकों पर भारत की मदद की है। इजरायल ने न केवल तकनीकी और सैन्य सहायता प्रदान की है, बल्कि कई संकट के समय भारत के साथ खड़ा रहा है, फिर चाहे वो पाकिस्तान के साथ युद्ध हो या चीन के साथ युद्ध, इजराइल ने हमेशा भारत का साथ दिया है। इसके विपरीत, फिलिस्तीन ने कश्मीर मामले में पाकिस्तान का समर्थन किया है और कई मुस्लिम देशों द्वारा फिलिस्तीनी आतंकी संगठनों को समर्थन प्राप्त है। इसके अतिरिक्त, यह भी महत्वपूर्ण है कि इजरायल को हथियार भारतीय कंपनियां बेच रही हैं, न कि भारत सरकार। कंपनियां अपने व्यावसायिक लाभ के लिए इन उत्पादों की बिक्री कर रही हैं, और यदि इस बिक्री पर रोक लगाई जाती है, तो कंपनियों को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ेगा। क्या प्रशांत भूषण, ज्यां द्रेज या अन्य याचिकाकर्ता इस नुकसान की भरपाई करेंगे?
वहीं, फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास को तुर्की, इराक, ईरान, और कतर जैसे मुस्लिम देशों से भी समर्थन प्राप्त है। इस संदर्भ में, कांग्रेस और उसके समर्थकों का इजरायल के खिलाफ विरोध हमेशा से रहा है, प्रशांत भूषण, ज्यां द्रेज़ किस तरह से कांग्रेस से जुड़े हुए हैं, ये बताने की जरूरत नहीं है। परंतु, यह सवाल भी उठता है कि यदि पाकिस्तान के आतंकी भारत में घुसकर मारकाट मचाएं और नागरिकों का अपहरण करें, तो क्या भारत पलटवार नहीं करेगा? क्या भारत को अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए? इजरायल भी अपनी सुरक्षा के लिए वही कर रहा है। हालाँकि, भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कहा है कि वह शांति का पक्षधर है और युद्ध के बजाय बातचीत के माध्यम से समाधान की ओर अग्रसर होना चाहती है। लेकिन, बातचीत की संभावना तभी है जब हमास बंधकों को छोड़े, जिनमें से कई की हत्या हो चुकी है।
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