मोल हर चीज का होता है, चाहे वह कोई भी चीज हो। बस जरूरी यह है कि लोग उसे किस नजरिये से देखते हैं? आज हम आपसे इसी मोल से जुड़ी एक कहानी बताने जा रहे है। जहां पर हम जानेंगे जीवन के मोल के बारे में, तो चलिए एक नजर डालते है, जीवन के इस मोल पर- एक बार महर्षि रमण के आश्रम में एक अध्यापक आए। पारिवारिक कलह के कारण अध्यापक आत्महत्या करना चाहते थे, लेकिन निर्णय लेने से पहले वे महर्षि से मिलने चले आए। अध्यापक ने उन्हें अपनी सारी बात बताई और अपनी राय देने को कहा।
महर्षि उस समय आश्रमवासियों के भोजन के लिए बड़ी सावधानी से पत्तलें बना रहे थे। वे चुपचाप अध्यापक की बातें सुनने लगे। अध्यापक को पत्तल बनाने में स्वामीजी के परिश्रम और तल्लीनता को देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने आखिर पूछ ही लिया- 'भगवन, आप इन पत्तलों को इतने परिश्रम से बना रहे हैं, लेकिन थोड़ी देर बाद भोजन के बाद ये कूड़े में फेंक दिए जाएंगे।'
महर्षि मुस्कुराते हुए बोले, 'आप ठीक कहते हैं, लेकिन किसी वस्तु का पूरा उपयोग हो जाने के बाद उसे फेंकना बुरा नहीं है। बुरा तो तब कहा जाएगा, जब उसका उपयोग किए बिना अच्छी अवस्था में ही उसे कोई फेंक दे। आप तो सुविज्ञ हैं। मेरे कहने का आशय तो समझ ही गए होंगे।' इन शब्दों से अध्यापक महोदय की समस्या का समाधान हो गया। उनमें जीने का उत्साह आ गया और उन्होंने आत्महत्या करने का विचार त्याग दिया।