मानव चाहे किसी भी देश का हो लेकिन वह जिस देश में निवास करता हैं, जिस देश की रोटी खाता है, जिस देश का पानी पीता हैं. उसे गुणगान भी उसी देश का करना चाहिए. अर्थात मानव को कम से कम उस देश की भाषा का ज्ञान तो अवश्य होंना चाहिए. भाषा किसी देश से उस व्यक्ति को जोड़ने में सबसे बड़ी भूमिका निभाती हैं. विद्यार्थियों को उसे लिखना-पढ़ना तो आवश्यक रूप से आना चाहिए. और उसे लिखने सम्बन्धी तो कोई वजह होनी ही नहीं चाहिए.
विकसित देशो में छात्रों को चाहे लैपटॉप या कम्प्यूटर से पढ़ाई करने, परीक्षा देने या नोट्स लेने की अनुमति दे दी जाए और वहाँ यह नयी परम्परा स्थापित करने में कोई कठिनाई न आए, परन्तु भारत जैसे पारम्परिक देश में यह बहुत कठिन है. वैज्ञानिक भी मानते है कि मानव के हाथों का लेखन स्मरण शक्ति की वृद्धि को बहुत हद तक बढ़ाता हैं. हस्तलेखन स्वयं के साथ सामने वाले पर भी प्रभाव छोड़ता हैं. आज संग्रहालयों में महान् लेखकों, कवियों, कलाकारों की हस्तलिपि में उनका कौशल पत्रों, पाण्डुलिपियों व अन्य रचनाओं के रूप में संरक्षित है, जिन्हें बड़े चाव से देखा जाता है.
विश्व प्रसिद्द कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय अपनी आठ सौ वर्ष पुरानी लिखित परीक्षा की परम्परा समाप्त करने का मन बना रहा हैं. वह यह विचार छात्रों की ख़राब हस्तलिपि को देखते हुए बना रहा है, इसके स्थान पर अब विश्वविद्यालय लैपटॉप या आईपैड पर परीक्षा के पक्ष में है. इसके लिए यूनिवर्सिटी ने अपनी कोशिशे भी तेज कर दी हैं. डॉ. सारा पीयरसन ने बताया कि मौजूदा छात्र पीढ़ी के बीच लिखावट एक लुप्त कला बनती जा रही है, पहले बच्चे नियमित रूप से प्रतिदिन 1-2 घंटे हाथ से लिखते थे, परन्तु अब यह देखने को नहीं मिलता. उन्होंने आगे बताया कि लेक्चर नोट्स के लिए भी उनमें लैपटॉप का प्रयोग बढ़ रहा है. इसलिए हम विचार कर रहे हैं कि लिखित परम्परा को समाप्त कर दिया जाए.
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