इस मंदिर में बिना रक्त के दी जाती है बलि

इस मंदिर में बिना रक्त के दी जाती है बलि
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वैसे तो भारत में कई देवी-देवताओं के मंदिर हैं. जो अपनी परंपरा, चमत्कार, शक्ति के कारण प्रसिद्ध है. हर देवी-देवता के मंदिर की कोई न कोई खाशियत होती है. जिसके कारण लोगों के मन में हर देवी-दवता के लिए अपनी ही श्रृद्धा होती है. इसी तरह एक मंदिर बिहार में है जो अपने चमत्कारों के कारण प्रसिद्ध है. इस मंदिर में दूर-दूर से ही नहीं विदेशों से भी भक्त आते है.

बिहार के भभुआ में मुंडेश्वरी मंदिर है जो कि काफी प्राचीन और धार्मिक स्थलों में से एक है. इस मंदिर को कब किसने बनाया है इस बारें में कहना कठिन है, लेकिन यहां पर लगे शिलालेख के अनुसार उदय सेन नामक क्षत्रप के शासन काल में इसका निर्माण हुआ.

इस मंदिर में पूजा 1900 सालों से लगातार होती चली आ रही है. यह मंदिर पूरी तरह से जीवंत है. पौराणिक और धार्मिक प्रधानता वाले इस मंदिर के मूल देवता हजारों वर्ष पूर्व नारायण अथवा विष्णु थे. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार भगवती ने इस इलाके में अत्याचारी असुर मुण्ड का वध किया. इसी से देवी का नाम मुंडेश्वरी पड़ा.

यहां पर बलि देने की अनूठी परंपरा है. यहां पर बलि के रुप में बकरें को मारा नही जाता है बल्कि उसकी पूजा कर छोड़ दिया जाता है. इसके लिए बलि के लिए मां की मूर्ति के समक्ष लाए गए बकरे पर पुजारी मंत्रपूत अक्षत-पुष्प छिड़कते हैं और बकरा बेहोश सा होकर शांत पड़ जाता है.

पुनः पुजारी द्वारा अक्षत पुष्प छिड़कते हीं जागृत होकर बकरा डगमगाते कदमों से स्वयं मुख्य द्वार से बाहर चला जाता है. इस प्रकार रक्तहीन बलि संपूर्ण होती है. सचमुच यहां पर माता साक्षात विराजती हैं तभी तो अपनी संतान का वध नहीं चाहती बल्कि उसके सर्वस्व समर्पण से पुलकित होकर चिरजीवन का वरदान देती है.

शाम के समय न बैठे पैर के ऊपर पैर...

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