देहरादून: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की तैयारी अंतिम चरण में है। राज्य की बीजेपी सरकार जल्द ही इसे लागू करने की घोषणा कर सकती है, बताया जा रहा है कि इसी 26 जनवरी से UCC लागू हो जाएगा। वहीं, मुस्लिम संगठनों ने संविधान के इस अनुच्छेद 44 के लागू होते ही भीषण विरोध करने का ऐलान किया है, वे अपने इस्लामी कानून के मुताबिक ही चलना चाहते हैं, संविधान के अनुसार नहीं। इस विषय पर देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई ने अपनी राय रखते हुए इसे एक प्रगतिशील कदम बताया है। उन्होंने कहा कि यूसीसी राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, लेकिन इसे लागू करने से पहले समाज में आम सहमति बनाना आवश्यक है।
सूरत लिटफेस्ट 2025 के दौरान “न्यायपालिका के लिए चुनौतियां” विषय पर बोलते हुए गोगोई ने कहा कि समान नागरिक संहिता, जो विभिन्न परंपराओं के स्थान पर एक समान कानून लाएगी, एक सकारात्मक बदलाव होगा। उनका कहना था कि यूसीसी गोवा में सफलतापूर्वक काम कर रहा है और इसे पूरे देश में लागू करना संभव है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 से किसी भी प्रकार का टकराव नहीं करेगा।
गोगोई ने कहा कि यह कानून विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे मामलों को नियंत्रित करेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि इसे लेकर बेवजह की गलतफहमियों को दूर करना और समाज को इस कानून के फायदों के बारे में समझाना जरूरी है। राम मंदिर पर ऐतिहासिक फैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच की अध्यक्षता कर चुके गोगोई ने यह भी कहा कि कुछ लोग इस कानून को नहीं समझना चाहेंगे, लेकिन समाज को प्रगति के लिए आगे बढ़ना होगा। उन्होंने सरकार और सांसदों से अनुरोध किया कि वे इस विषय पर समाज को जागरूक करें और एकता के साथ इस कानून को आगे बढ़ाएं।
गोगोई ने न्यायपालिका से संबंधित समस्याओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि देश में लंबित मामलों की संख्या बढ़कर 5 करोड़ हो गई है। इसे कम करने के लिए जजों की संख्या 24,000 से बढ़ाकर 1 लाख तक करनी होगी। इसके अलावा, गोगोई ने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि बार-बार चुनाव होने से सरकार के कामकाज पर प्रभाव पड़ता है और इस प्रक्रिया में भारी संसाधन खर्च होते हैं। उनका मानना है कि इस समस्या का समाधान देश के बेहतर प्रशासन के लिए जरूरी है।
दूसरी ओर, उत्तराखंड में यूसीसी के प्रस्ताव का विरोध भी हो रहा है। मुस्लिम सेवा संगठन, तंजीम-ए-रहनुमा-ए-मिल्लत और जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों ने इसे अस्वीकार्य बताते हुए अदालत में चुनौती देने की बात कही है। मुस्लिम सेवा संगठन के अध्यक्ष नईम कुरैशी ने कहा कि जैसे ही यूसीसी लागू किया जाएगा, वे उत्तराखंड हाई कोर्ट का रुख करेंगे। उनका आरोप है कि इस कानून के जरिए एक धर्म की परंपराओं को दूसरे धर्म पर थोपने की कोशिश की जा रही है। यूसीसी के पक्ष और विरोध में विचारों के बीच यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उत्तराखंड सरकार इसे किस तरह से लागू करती है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है।