काशी में खुलता है स्वर्ग का द्वार

काशी में खुलता है स्वर्ग का द्वार
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काशी को शिव भगवान् का दूसरा निवास स्थान माना जाता है. ऐसा माना जाता है कैलाश के बाद अगर शिव का कहीं वास है तो वह काशी ही है. इसलिए काशी को दूसरा कैलाश भी कहा जाता है. हमारे पुराणों में बताया गया है की काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है. जो व्यक्ति यहां अपना शरीर त्यागता है तो उसे सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

काशी के बारे में एक कथा प्रचलित है की एक बार एक असुर शिवलिंग को चुरा कर भाग रहा था. जब वह भागते भागते शिवलिंग को लेकर काशी पहुंचा तो भगवान शिव को ये नगरी इतनी पसंद आयी की भगवान् शिव ने विचार किया कि अब वह काशी को छोड़कर नहीं जाएंगे और वह इसके लिए कुछ तरीका सोचने लगे कि कैसे काशी में उनका निवास बन जाए.

शिव ने अपनी लीला आरम्भ कर दी और उसी समय मुर्गा बांग देने लगा जिससे वह राक्षस भयभीत हो गया. उसे लगा की सुबह हो गई है और वह शिवलिंग को वहीं छोड़कर भाग गया. फिर बाद में देवाताओं ने जाकर इस शिवलिंग की स्थापना काशी में कर के भगवान् का पूजन किया और इस शिवलिंग को अविमुक्तेश्वर नाम दिया.

ऐसा माना जाता है की जिस भी व्यक्ति को अविमुक्तेश्वर शिवलिंग की कृपा प्राप्त हो जाती है उसे नर्क में नहीं जाना पड़ता है. जो व्यक्ति यहां मृत्यु को प्राप्त करता है उसे सीधा शिवलोक में जगह मिल जाती है. इस मंदिर के पास एक कुंड है जो भी व्यक्ति इस कुंड का जल पीता है उसे जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है.

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