लखनऊ: अभी कुछ समय पहले ही बहुजन समाज पार्टी में अनुशासन को शीर्ष पर रखने की पार्टी मुखिया मायावती की वरीयता अब पार्टी के लिए मुसीबत बन रही है. मायावती का पार्टी के नेता के साथ कार्यकर्ता पर अनुशासन के नाम पर सख्त रवैया पार्टी में बाहर से आने वाले लोगों के कदम खींच रहा है. जंहा बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती की सख्ती भी बहुजन समाज पार्टी के लिए मुसीबत बनती जा रही है. गत एक माह में दो दर्जन से अधिक वरिष्ठ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने से संगठनात्मक गतिविधियां भी प्रभावित हो रही हैं. संगठन का हाल देखकर बसपा नेतृत्व ने विधान परिषद स्नातक व शिक्षक क्षेत्र निर्वाचन से किनारा कर लिया है. इतना ही नहीं, अगले वर्ष होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारी भी ठप पड़ी है.
कार्रवाई का चाबुक दलितों पर ज्यादा: सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पुराने एवं समर्पित कार्यकर्ताओं को मलाल है कि बसपा प्रमुख मायावती की कार्रवाई के शिकार दलित नेता ही अधिक बन रहे हैं. एक पूर्व विधायक का कहना है कि मुस्लिम नेताओं की खामियों को अनदेखा किया जा रहा है. केवल दलित ही साफ्ट टारगेट बनाए जा रहे हैं. उनका कहना है कि सक्रिय नेताओं को एक-एक करके पार्टी से बाहर करना 2022 में भारी पड़ेगा. हाल के उपचुनावों में भी बसपा को नुकसान उठाना पड़ा था. समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोडऩे को लेकर भी कार्यकर्ताओं का एक खेमा नाराज उनका कहना है कि इस फैसले से बसपा का दलित-मुस्लिम गठबंधन भी कमजोर पड़ा है.
अन्य दलों के नेताओं की पहली बसपा नहीं: हम आपको बता दें कि बसपा में निष्कासन का सिलसिला जारी रहने से अन्य दलों से पार्टी में आने का उत्साह भी खत्म हो गया है, जिसके चलते उपचुनाव के बाद बसपा में किसी बड़े नेता की ज्वाइनिंग नहीं हो सकी है. इसके विपरीत बसपा को छोड़कर सपा, भाजपा व कांग्रेस में शामिल होने वाले दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं. एक पूर्व मंत्री अपना नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर बताते हैैं कि पार्टी फंड के नाम पर होने वाली सख्ती भी अब तो बर्दाश्त से बाहर है. इसके साथ ही बसपा संगठन में आए दिन की अदला-बदली से भी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है.
बिहार के पूर्व सीएम के घर हुई चोरी, यूपी से पकड़े गए 3 बदमाश
उपेंद्र कुशवाहा के आमरण अनशन का आज तीसरा दिन, पल्स रेट और बीपी में आई गिरावट
पिथौरागढ़ उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी चंद्रा पंत की जीत, कांग्रेस को मिली मात