मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने जातिगत आरक्षण पर टिप्पणी करने को किसी समुदाय के खिलाफ नहीं मानते हुए यह फैसला सुनाया कि ऐसे मामलों में एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज नहीं किया जा सकता। यह आदेश एक केस की सुनवाई के दौरान दिया गया। इस मामले में एक महिला ने अपने बॉयफ्रेंड के साथ रिलेशनशिप खत्म करते हुए उसे वॉट्सऐप पर एक संदेश भेजा था। शख्स का दावा था कि महिला ने वॉट्सऐप पर जातिगत टिप्पणी की और आरक्षण के खिलाफ बात की।
कोर्ट ने कहा कि दो व्यक्तियों के बीच वॉट्सऐप पर की गई बातचीत और फॉरवर्ड किए गए संदेश को एससी-एसटी ऐक्ट के दायरे में नहीं लाया जा सकता। न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फालके ने कहा कि इस मामले में महिला ने सार्वजनिक तौर पर कोई जातिगत टिप्पणी नहीं की थी और न ही किसी को अपमानित करने की कोशिश की थी। महिला ने निजी बातचीत में संदेश भेजा था और यह किसी भी समुदाय के खिलाफ अपमानजनक या घृणा फैलाने वाली बात नहीं थी।
यह मामला नागपुर का है, जहां एक 29 साल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर का 28 साल की महिला से गुपचुप रिलेशन था। दोनों ने एक मंदिर में शादी की थी, लेकिन जब महिला को यह पता चला कि वह शख्स अनुसूचित जाति से है, तो उनके रिश्ते में दरार आ गई। रिश्ते के टूटने के बाद महिला ने वॉट्सऐप पर एक मेसेज भेजा, जिससे शख्स ने महिला और उसके पिता के खिलाफ मामला दर्ज कराया। कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखते हुए महिला के खिलाफ दर्ज केस को खत्म कर दिया।