सिख इतिहास में दस गुरुओं की जिंदगी में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जो हमें सिखाते हैं कि हमें अपनी जिंदगी कैसे जीना चाहिए। जिंदगी में सभी के प्रति चाहे वह हमारे परिवार, मित्र,अनजान शख्स या शत्रु ही क्यों न हों, यहां तक कि पेड़-पौधे एवं जानवरों आदि के लिए भी अपने भीतर प्रेम एवं दया की भावना को जाग्रत करना होगा। जब हम यह अनुभव करते हैं कि हम एक शरीर नहीं बल्कि एक आत्मा हैं, तब हम इस दुनिया के प्रति और अधिक जागरूक हो जाते हैं। तब हम इस बात का हमेशा ध्यान रख पाते हैं कि किन चीजों से इस भूमि की संपदा को कायम रखा जा सकता है?
इसके अतिरिक्त हम इस भूमि पर रहने वाले छोटे से छोटे जीव-जंतुओं के दर्द के प्रति और भी अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी की जिंदगी से एक बेहद ही अहम घटना हमें यह सिखाती है कि कैसे हमें दूसरों से प्रेमपूर्वक बर्ताव करना चाहिए? उन्होंने उस वक़्त के अत्याचारी शासकों के विरुद्ध युद्ध किया। उनके प्रिय शिष्य भाई कन्हैया थे, जिन्हें युद्ध के मैदान में घायल सिपाहियों को पानी पिलाने की सेवा दी गई थी। किन्तु भाई कन्हैया सिर्फ अपनी ओर के सिपाहियों को ही नहीं, बल्कि शत्रुओं के घायल सिपाहियों को भी पानी पिलाते थे। तो कुछ व्यक्ति गुरु गोविंद सिंह जी के पास गए तथा उन्होंने उनसे भाई कन्हैया के इस बर्ताव की शिकायत की। तब गुरु गोविंद सिंह जी ने भाई कन्हैया से इसका उत्तर पूछा तो भाई कन्हैया ने गुरु साहब को यह कहा कि, ‘मैं जहां भी आपकी ज्योति देखता हूं, मैं वहीं पानी पिला देता हूं।’ यह सुनकर गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा कि यही एक ऐसा शख्स है, जिसने मेरी शिक्षा को सही तौर पर समझा तथा उस पर अमल किया। तब उन्होंने भाई कन्हैया को यह भी आदेश दिया कि अब आगे से पानी ही नहीं, बल्कि उन सिपाहियों की मरहम-पट्टी भी किया करें।
न केवल सिख इतिहास से, बल्कि सभी धर्म-ग्रंथों से हमें यही शिक्षा प्राप्त होती है कि हम एक सदाचारी जीवन बिताए। सदाचारी जीवन की कुंजी ही हमारी आत्मा के सभी दरवाजों को खोल सकती है। सदाचारी जीवन का मतलब यह है कि हम अपनी जिंदगी में से अवगुणों को बाहर निकालें तथा सद्गुणों को अपनाएं। यदि हमें भाई कन्हैया की ओर सभी जीवों में ईश्वर की ज्योति देखनी है, तो हमें सबसे प्रेम करना होगा तथा दूसरों के प्रति नम्रता, ईमानदारी एवं दया का भाव अपने भीतर उत्पन्न करना होगा।
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