चेन्नई: श्रीलंका की नौसेना ने रविवार (16 अक्टूबर) को कहा कि श्रीलंका के जल क्षेत्र में कथित तौर पर अवैध शिकार करने के आरोप में 27 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया गया है। इसमें कहा गया है कि मछुआरों को शनिवार को पूर्वोत्तर में मन्नार के तट (तमिलनाडु से 10 किमी दूर) और उत्तर में डेल्फ़्ट और कच्चाथीवू (ये द्वीप कभी भारत का था) द्वीपों से गिरफ्तार किया गया। अधिकारियों ने कहा कि श्रीलंकाई नौसेना ने दो भारतीय ट्रॉलरों को पकड़ लिया जो मन्नार के पास द्वीप के जल में बने रहे, जिनमें 15 भारतीय मछुआरे सवार थे, जबकि 12 मछुआरों के साथ तीन भारतीय ट्रॉलरों को डेल्फ़्ट और कच्चाथीवू द्वीप समूह के पास से गिरफ्तार किया गया। उन्होंने बताया कि गिरफ्तार मछुआरों को आगे की कानूनी कार्रवाई के लिए अधिकारियों को सौंप दिया गया है।
बता दें कि, सितंबर में, 17 भारतीय मछुआरों को जाफना के कच्चाथीवू द्वीप के तट से गिरफ्तार किया गया था। मछुआरों का मुद्दा भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों में एक विवादास्पद मुद्दा है, यहां तक कि श्रीलंकाई नौसेना के जवानों ने पाक जलडमरूमध्य में भारतीय मछुआरों पर गोलीबारी भी की और श्रीलंकाई क्षेत्रीय जल में अवैध रूप से प्रवेश करने की कई कथित घटनाओं में उनकी नौकाओं को जब्त कर लिया। बता दें कि, पाक जलडमरूमध्य, जो तमिलनाडु को श्रीलंका से अलग करने वाली पानी की एक संकीर्ण पट्टी है, दोनों देशों के मछुआरों के लिए एक समृद्ध मछली पकड़ने का मैदान है।
Katchatheevu, an Island, was owned by the Ramnad Kingdom of Ramanathapuram Rameshwaram and it later came under the Madras Presidency during British rule of India.
— Anshul Saxena (@AskAnshul) August 11, 2023
Will we ever be able to rectify the mistake of 1974 & get our Katchatheevu island back from Sri Lanka? pic.twitter.com/21ebcV2vA9
यह भी एक चिंताजनक मुद्दा है कि, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को कथित रूप से पार करने और श्रीलंकाई जल में मछली पकड़ने के आरोप में श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किए जाने की समय-समय पर घटनाएं होती रही हैं।
क्या है कच्चाथीवू द्वीप का इतिहास:-
दरअसल, रामेश्वरम के पास भारत-श्रीलंका सीमा के भीतर बसा कच्चाथीवू द्वीप एक विवादास्पद केंद्र बिंदु के रूप में विकसित हो गया है, जिससे इस पर कब्ज़ा करने की तीव्र मांग उठ रही है। ऐतिहासिक रूप से, यह द्वीप भारत और श्रीलंका दोनों के तमिल मछुआरों के लिए एक साझा एन्क्लेव के रूप में कार्य करता है। वर्ष 1974 में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया जब तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने द्विपक्षीय समझौते के तहत श्रीलंका को अपनी संप्रभुता सौंप दी। 1974 में, भारत की प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के बीच एक समझौता हुआ, जिसके परिणामस्वरूप कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका के अधिकार क्षेत्र में चला गया। कच्चाथीवू द्वीप के हाथ से निकलने के कुछ ही समय बाद, भारत के भीतर इसे वापस लाने के लिए आवाज उठने लगी। कुछ दिनों पहले ही पीएम मोदी ने संसद में भी इसका जिक्र किया था कि, किस तरह पीएम इंदिरा गाँधी ने यह महत्वपूर्ण द्वीप श्रीलंका को दे दिया।
वर्ष 1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव को अपनाया, जिसमें द्वीप पर संप्रभुता पुनः प्राप्त करने की मांग व्यक्त की गई थी। इसके बाद, 2008 में, यह मुद्दा प्रमुखता से फिर से सामने आया जब तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने द्वीप समझौते को रद्द करने की मांग करते हुए मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हालाँकि, समय-समय पर यह मांग उठती रही है। इस तरह की बार-बार होने वाली घटनाओं के कारण, कच्चाथीवू द्वीप को पुनः प्राप्त करने की मांग बढ़ रही है। तमिलनाडु सरकार का मानना है कि इस मौजूदा समस्या को हल करने के लिए इस द्वीप पर फिर से नियंत्रण हासिल करना महत्वपूर्ण है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने जून 2021 और अप्रैल 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस बारे में बात की थी । इन चर्चाओं के दौरान उन्होंने दो ज्ञापन प्रस्तुत किए, जिनमें कच्चाथीवु द्वीप पर फिर से नियंत्रण पाने की आवश्यकता पर बल दिया गया था। इन ज्ञापनों में तमिलनाडु के मछुआरों को होने वाले महत्वपूर्ण नुकसान और कठिनाइयों पर प्रकाश डाला गया था।
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