नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेताओं ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के अध्यक्ष एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने उपराष्ट्रपति पद की गरिमा एवं इसके महत्व पर प्रकाश डाला, साथ ही उन्होंने इस प्रस्ताव को लाने के पीछे के कारणों के बारे में बताया।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि उपराष्ट्रपति पद लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है तथा इस पर बैठने वाले लोग निष्पक्षता से काम करते हैं। खड़गे ने यह भी बताया कि कई सालों तक इस पद पर रहे नेताओं ने अपने कर्तव्यों का पालन किया तथा सदन को सटीक दिशा में चलाया। खड़गे ने उदाहरण के रूप में देश के पहले उपराष्ट्रपति, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद करते हुए कहा कि राधाकृष्णन ने हमेशा इस पद को राजनीतिक दलों से ऊपर रखा। 1952 में राधाकृष्णन ने यह स्पष्ट किया था कि वह किसी पार्टी से नहीं हैं, बल्कि सभी पार्टियों से आते हैं। इसका मतलब यह था कि वह सदन के कार्यों में निष्पक्ष रहते थे तथा कभी भी किसी पार्टी के पक्ष में नहीं झुके।
खड़गे ने आगे कहा कि राधाकृष्णन के समय से लेकर अब तक किसी भी उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया था, क्योंकि उन सभी ने अपने कार्यों में निष्पक्षता बनाए रखी थी। किन्तु आज हालात ये बन गए है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ रहा है, क्योंकि वह पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्य कर रहे हैं। खड़गे का आरोप था कि धनखड़ ने न सिर्फ नियमों का उल्लंघन किया, बल्कि विपक्षी नेताओं के साथ पक्षपाती व्यवहार भी किया।
खड़गे ने आरोप लगाया कि उपराष्ट्रपति का व्यवहार कभी सरकार के पक्ष में होता है तथा कभी वह खुद को RSS का समर्थक बताते हैं। उनका यह बर्ताव सदन की कार्यवाही को प्रभावित करता है तथा इससे विपक्षी नेताओं को बोलने का उचित मौका नहीं प्राप्त होता। खड़गे ने कहा कि यह स्थिति दुखद है, क्योंकि एक ऐसा व्यक्ति जो निष्पक्ष रूप से कार्य करने का दायित्व निभाता है, वह अब अपनी भूमिका से भटक चुका है तथा अपने आचरण से सदन की गरिमा को नुकसान पहुंचा रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उपराष्ट्रपति कभी-कभी सदन में सीनियर और जूनियर का भी ध्यान नहीं रखते। जब विपक्षी सदस्य मुद्दों पर बात करना चाहते हैं, तो उन्हें बोलने से रोका जाता है, जबकि सत्ता पक्ष के सदस्य बिना किसी रोक-टोक के अपनी बातें रखते हैं। खड़गे ने यह भी कहा कि जब विपक्षी सदस्य कोई सवाल उठाते हैं, तो उपराष्ट्रपति उनकी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं तथा सरकार के पक्ष में बयानबाजी करने लगते हैं। इससे सदन की कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न होता है और लोकतंत्र की बहस का उद्देश्य अधूरा रह जाता है।
खड़गे ने आरोप लगाया कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की निष्ठा संविधान एवं संसदीय परंपराओं की बजाय सत्ताधारी दल के प्रति अधिक दिखती है। उन्होंने कहा कि उपराष्ट्रपति द्वारा नियमों का पालन न करना और विपक्षी नेताओं को बोलने से रोकना सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में एक बड़ी बाधा उत्पन्न करता है। खड़गे ने यह भी कहा कि जब विपक्षी नेता सदन में पांच मिनट बोलने का समय मांगते हैं, तो उनका भाषण दस मिनट का हो जाता है, किन्तु सत्ता पक्ष के नेताओं को बिना किसी रोक-टोक के लंबी बातें करने का अवसर मिलता है।
इसके अतिरिक्त, खड़गे ने यह आरोप भी लगाया कि उपराष्ट्रपति प्रमोशन की इच्छा से सरकार के प्रवक्ता की तरह कार्य कर रहे हैं। वह अपनी भूमिका के बजाय सरकार के हितों का समर्थन करते हैं, जो उनके पद की निष्पक्षता और गंभीरता को कमजोर करता है। खड़गे ने यह भी कहा कि उपराष्ट्रपति सदन को ठप करने का प्रयास करते हैं, और जब सदन में कोई विषय उठाया जाता है, तो वह उसे आगे बढ़ने से रोकते हैं।
खड़गे ने यह स्पष्ट किया कि उनकी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के साथ कोई व्यक्तिगत या राजनीतिक दुश्मनी नहीं है, किन्तु स्थिति ऐसी बन गई है कि उन्हें अविश्वास प्रस्ताव लाने का कदम उठाना पड़ा है। उन्होंने कहा कि यह कदम न केवल उपराष्ट्रपति के आचरण के कारण, बल्कि संसद की गरिमा और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बचाने के लिए लिया गया है।